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सरस्वती पूजा पर अनुशासित रहने का लें संकल्प

सरस्वती पूजा पर विशेष
मांगोबंदर (शुभम मिश्र) :
वसंत का आगमन प्रकृति में नया रोमांच पैदा करता है।वसंत सृजनकर्ता है ।ऋतुओं का राजा वसंत परिवर्तन का अग्रदूत है ।इसमें न तो, शरीर को झुलसानेवाली गर्मी होती है और न ही हाड़ कंपानेवाली सर्दी ।पेड़ों में नवांकुरित पत्ते, मदमस्त हवाओं में झूमते पीले सरसों के फूल और सूर्यदेव की मीठी धूप मन और तन को नयी ताजगी प्रदान करती है ।प्रकृति-प्रेमियों के लिए यह ऋतु मानो उपहार ही है ।वसंत के पांचवें दिन विद्या की देवी की पूजा की जाती है ।कुरीतियों से मुक्ति और जीवन में सफलता की प्राप्ति के लिए उस दिन हम सभी मां के आगे नतमस्तक होते हैं ।इस बार यह उत्सव, 10 फरवरी को मनाया जायेगा ।शिक्षा व्यवस्था से जुड़े नूतन और पुरातन लोगों के साथ किसी न किसी रूप में विद्या अध्ययन कर रहे लोगों के दिलों में मां शारदे के प्रति गहरी आस्था रहती है ।
स्कूल-कालेजों और कोचिंग संस्थानों में इस पूजा का खासा महत्व रहता है ।लेकिन, इस दिन भक्तिमय माहौल की स्थापना के बजाय प्रशासन द्वारा निर्धारित मानकों के ऊपर फूहड़ गीतों को बजाने अथवा डीजे और पार्टियों के आयोजन का कोई औचित्य नहीं नजर आता।अगर यही भक्ति है, तो यह विद्यार्थी जीवन और समाज के लिए अभिशाप है । शिक्षा अथवा विद्या प्राप्ति का उद्देश्य छात्रों में नैतिकता, विनम्रता और सभ्यता का विकास भी करना है ।पूजा हो,लेकिन विद्यालय प्रबंधन के नियमों को ताख पर रख कर नहीं ।गानें भी बजे, लेकिन अर्थपूर्ण, कर्णप्रिय और संदेशपरक ।संस्कारी, परोपकारी बन कर समाज की परंपराओं का अनुकरण करते हुए सफलता प्राप्त करना ही विद्यार्थियों का लक्ष्य होना चाहिए ।सरस्वती पूजा के अवसर पर शिक्षकों के सम्मान और समय-प्रबंधन के साथ-साथ अनुशासित रहने का संकल्प लेना चाहिए ।