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Wednesday, 30 January 2019

संस्मरण : मंच पर बैठे ठंड से कांप रहे थे रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस

राजनीति के क्षेत्र में सक्रीय गिद्धौर निवासी धनंजय कुमार सिन्हा का यह संस्मरण, जो उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के सन्दर्भ में अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, वो मूल रूप से आपको पढवाने जाने रहे हैं. इसमें उन्होंने दामोदर रावत, जो कि वर्तमान में जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं, से पारिवारिक निकटता होने के कारण काकू लिखकर संबोधित किया है. बंगाल में चाचा को काकू कहा जाता है और गिद्धौर का बंगाल से निकट होना यहाँ की लोक-संस्कृति में बंगाल की परम्पराओं को काफी हद तक दर्शाता है.


संस्मरण (धनंजय कुमार सिन्हा) : साल 2004 या 2005 का था। ठंड का ही समय था। मैं पटना में दामोदर काकू के फ्लैट पर रहता था। हमलोग ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे। ऊपर जदयू का कार्यालय था। तब दामोदर काकू विधायक थे। बाद में वे बिहार सरकार में समाज कल्याण एवं भवन निर्माण मंत्री भी हुये।
उस दिन दामोदर काकू सुबह उठे। मेरी भी नींद खुल गई थी। समय 6 बजे का रहा होगा। वे तैयार होने लगे। मुझे जगा हुआ देख उन्होंने कहा, 'तैयार हो जाओ छोटू, चलो तुमको नालन्दा विश्वविद्यालय घुमाते हैं।'

दरअसल बिहारशरीफ में जॉर्ज फर्नांडिस जी का कुछ कार्यक्रम था, और दामोदर काकू को उनसे मिलने जाना था।

हमलोग तैयार होकर फ्लैट से बाहर निकले। फिर किराये पर एक अम्बेसडर कार अरेंज किया, और फिर बिहारशरीफ की ओर बढ़ गये।

हमलोगों की कार बिहारशरीफ सर्किट हाउस पहुँची। जॉर्ज साहब निर्धारित कार्यक्रम के लिये निकलने ही वाले थे। दामोदर काकू जॉर्ज साहब की गाड़ी में ही बैठ गये, और हमलोग जो अम्बेसडर लेकर आये थे, उस पर ड्राइवर के साथ अकेला मैं बच गया।

अब हमलोग बिहारशरीफ जिले के किसी स्थान पर जॉर्ज साहब के पहले से निर्धारित किसी कार्यक्रम-स्थल की ओर बढ़ रहे थे। आगे-आगे पुलिस/आर्मी की एक जिप्सी, उसके बाद जॉर्ज साहब की गाड़ी, और सबसे पीछे हमारी अम्बेसडर, इन्हीं तीन गाड़ियों के साथ कार्यक्रम स्थल की तरफ बढ़ रहा था देश के तत्कालीन रक्षामंत्री का काफिला।

खैर, हमलोग कार्यक्रम स्थल पर पहुँच गये। वहाँ विकलांग लोगों को ट्राय-साइकिल एवं अन्य उपकरण वितरित होने थे। बाहर से डॉक्टरों की टीम भी आई हुई थी।
धनंजय कुमार सिन्हा
कार्यक्रम शुरू हुआ। जॉर्ज साहब मंच पर विराजमान हुये। कई अन्य लोग भी मंच पर बैठे। धूप देर से निकली थी। धूप की पहुँच मंच तक नहीं हुई थी। मटमैले रंग का कुर्ता और सफेद रंग का पैजामा पहने मंच पर विराजमान जॉर्ज फर्नांडिस हल्का-हल्का काँप रहे थे। हो सकता है कि उन्होंने कुर्ते के भीतर कोई इनर पहन रखा हो। पर उस दिन उन्होंने शाल नहीं ओढ़ रखा था। रक्षा मंत्री को इस तरह ठंड से काँपते देख मैं हैरान था।

खैर, वह कार्यक्रम खत्म हुआ, और जॉर्ज साहब को वहाँ से पुनः एक अन्य कार्यक्रम में आस-पास ही कहीं जाना था। दामोदर काकू ने अब उनके साथ आगे न जाकर वापस पटना लौटने का निर्णय किया, और फिर हमलोगों की राहें अलग-अलग हो गई।

लौटने के क्रम में हमलोग नालन्दा विश्वविद्यालय के खंडहर को देखने गये। तब मुझे अपने जीवन में पहली बार नालन्दा विश्वविद्यालय देखने का अवसर प्राप्त हुआ था।

वहाँ से निकलने के बाद या बिहारशरीफ सर्किट हाउस पहुँचने से पहले, ठीक से मुझे याद नहीं, पर इस यात्रा के दौरान किसी समय हमलोग वर्तमान में बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार जी के घर पर भी थोड़ी देर के लिये गये थे। तब चील की आवाज वाला उनके मोबाइल का रिंगटोन मन में थोड़ी देर के लिये भय सा पैदा कर देता था।

पटना लौटते-लौटते हमलोगों को भी देर शाम या हल्का अँधेरा जैसा हो गया था। फ्लैट पर पहुँचकर थोड़ी देर रूकने के बाद दामोदर काकू ने सामान्य रूप से समाचार देखने के लिये टेलीविजन खोला। तभी ब्रेकिंग न्यूज आ रहा था कि देर शाम बिहारशरीफ से पटना लौटने के क्रम में कुहासा की वजह से रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस की गाड़ी में ट्रक से धक्का लग गया, जिसमें उन्हें हल्की चोट भी आई। इलाज के लिये उन्हें पटना भेजा गया।

खबर सुनकर दामोदर काकू दुखी हुये और अचम्भित होकर मुझसे बोले, 'देखे छोटू, इसी को कहते हैं भाग्य! हम अगर उनकी गाड़ी से नहीं उतरते और उनके साथ ही पटना वापस लौटने का प्लान करते तो हम भी उसी गाड़ी में होते!'

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