शुभम् कुमार :
आज विजयादशमी है, मने की दशहरा अब अच्छा से समझ गेले होंगे आपलोग. आज पूरा खुश है गाँव टोला के बुतरू सब कि माय बाऊजी साथ मेला देखेले जायेंगे. बहुत बुतरू भोरे से पूरा उत्सुक दिख रहा हैं कि आज हमहु मोबाइल खरिदेगे चल छैया छैया वाला, बोला परसाल खरिदे थे उ टूट गया और कोय बन्दुक खरिदे के बात कर रहा था तो कोय डोजर गाड़ी लेवे के, लेकिन आपको पता हैं माय बाउजी उ बुतरून सब से कम है कि.. इ बार इनका प्लान तो सुपरहिट है, एक बगल के चच्चा हमको अप्पन प्लान बताते हुए बोले कि.. मेला जाना है और एगो बिसटकिया किताब खरिदाय देना है जेकरा से सब फोटो मिल जाय, सेब से लेकर जेब्रा तक और अगला प्लान तो देखिए उस कितब्बा के बारे मे बुतरु को इ बताना है कि ये जादू वाला किताब हैं जेकरा मे जादू से सब जिन्दा हो जाता है, बस बुतरू भी खुश औरो माय बाप भी खुश. केतना मस्त प्लान है, सच्चे बोले तो हमहू इ प्लान का शिकार हुए है बच्चा में केत्ते बार ने. का कीजिएगा जमाना महँगा हो गया है जी.. सब समान एतना महँगा कि अब लोग के दू वक्त के रोटी के लिए सोचना पड़ता है तब कहाँ से उ अप्पन बेटा बेटी के पचास और सौ रूपया के खेलौना दिला पायेगा, बीस रुपया किताब काहे दिलाया उ बाप जानते है कि दाम भी कम और यहाँ खेलौना के नाम पर बहला फुसला के घर में ओक्कर भविष्य बनायेंगे, शायद इ सोच कर कि इ बुतरू बडा होकर अप्पन बेटा-बेटी के नहीं फुसलायेगा और ओकरा किताब भी खरिदवायेगा और चल छैया..छैया.. वाला मोबाइल भी. केत्तना अच्छा होता हैं माय बाबूजी के दिल, विषम परिस्थिति के बाबजूद एक सुपर फैसला, अब तनी समझदार हुए हम तो लगता है कि खेलौना के जगह किताबे ठीक था. बस एक्के बात बोलेगे आप सब से कि माय बाबूजी के कोय फैसला को टालिए मत बल्कि ओकरा पर अच्छे से विचार कीजिए, काहे कि उनका फैसला गलत नहीं होता. जानते है एगो रिक्शा वाला अप्पन बेटा के मेला मे खेलौना के जगह किताब ले दिया था, आज उ लड़का बड़ा होकर आइपीएस बन गेल है. माय बाबूजी के हमेशा इज्जत कीजिए जैसन उ आपका कंधा और सहारा बने बचपन में, आपको पाले पोषे औसने आप भी उनकर ख्याल रख्खल कीजिए ज्यादा उमर हो जाने के बाद, जिनगी तो यहे उलटफेर का नाम है जी, व्यस्त रहिए...मस्त रहिए. बहुते लोग को देखे है बड़ आदमी बने के बाद उ बर्तन धोवे वाला बाप को भूल गया जे ओकरा जादू वाला किताब खरीदाए थे मेला में; आप कभियो नाय भूलियेगा इस मजबूर और बेबस बाप को समझे ने.
आय दशहरा है.. उप्पर मे भी बता दिए पहले ही समझे और जिसको विजयादशमी भी कहते है इस मौके पर बहुते जगह दुर्गा मैया को बड़ी ही भक्तिभाव, श्रद्धापूर्ण और आस्थापूर्वक विदाई दी जाती है और किसी तालाब या पोखर में मैया की प्रतिमा विसर्जित कर दी जाती है और कहीं इस मौके पर रामलीला का आयोजन कर रावण वध किया जाता है. कहते हैं कि इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध कर सीता मैया को वापस लाया था. लंका के राजा रावण की गलती ये थी की उसने मर्यादा पुरूषोत्तम राम से बदला लेने के लिए एक नारी का हरण किया था वो नारी मैया सीता थी. बस एक नारी को हाथ लगाने की इतनी बड़ी सजा मिली थी उसे. अब जरा आज के युग में आये, समय के रथ का पहिया ऐसा घूमा की देश मे लाखों रावण और महिषासुर पैदा हो गए. आज लाखों रावण देश में है लेकिन फिर भी वध होता है एक लकड़ी और पुआल से बने रावण का और हमसब खूब खुशी मनाते है. याद रखिए आप रामराज्य कि खुशी मना रहे हैं आज के किसी विजय की नहीं, अगर वर्तमान समय को आप सोचें तो आपकी अन्तरात्मा झकझोर कर रख देगी, आप सिहर उठेगें. आज सीता बिच चौराहे पर हरण कर ली जाती है, उसके शरीर के चिथड़े उड़ जाते हैं और हम खुशी कैसे मनाते हैं?... पुतले का रावण बनाकर, अरे वो पुतले वाले रावण का तो कब का ही वध हो चुका है आज के रावण का कौन वध करेगा?.. आज की दुर्गा सिर झुकाए मौन है महिषासुर ठहाका लगा लगाकर दहाड़ रहा है. एक लाईन इस पर्व पर बड़ी ही प्रचलित है "असत्य पर सत्य की विजय" अब बताओ कितनी दुर्गा और सीतारूपी बेटी को न्याय मिला है जो दरिन्दगी का शिकार हुई. रामराज्य पर ही आधारित ये सत्य की तराजू ऐसे मामले पर असत्य की ओर झुकी मिलती है, क्यूकि न्याय सुनाने वाले घर में भी आज रावण एंट्री मार चुका है. जानते हो देशवासियों बेटियों को कोख मे मारना पाप हैं, लेकिन जब उस दुर्गा रूप बेटी के साथ बीच सड़क पर दरिन्दगी होती है और न्याय के बदले उल्टे उस लड़की के कपड़े पर सवाल उठा दिए जाते है तो इससे बड़ा कलंक माँ बाप के सर पर कभी नही होता. आज देश के हर गली, हर मोहल्ले मे रावण हैं कोई दहेज वाला रावण है तो कोई जिस्म वाला. सच बोलू तो आज देश में हर न्याय के कमरे में कोई रावण बैठा है इसलिए देश मे इतने रावण पैदा हो रहे है. मैं एक बात बोलू साल के 356 दिन नारियों का शोषण करने वाले तुम 9 दिन नवरात्रि न मनाओ तो ज्यादा अच्छा रहेगा. जिस दिन देश की नारियों को जिसे हम देवीरूप और शक्तिरूप मानते हैं, इनका सम्मान होने लगे, न्याय के हर दरवाजे से रावण का खात्मा हो जाये, उस दिन देखिएगा आपलोग दुर्गापूजा और दशहरा का रौनक. दशहरा और विजयादशमी के मौके पर सभी शक्तिरूपेण नारी को मेरा प्रणाम.
मैं सभी प्रिय पाठकों से गुजारिश करता हूँ कि आप सभी मातृरूपी नारी का सम्मान किया करें. अपने अन्दर रावण को कभीयो नहीं पनपने दें. अपने माई बाऊजी का हमेशा सम्मान करें और केतनो बड़ आदमी बन जाइये उनको मत भूलियेगा काहे की आपको आदमी बनवे के पिछे उनका ही हाथ है. फिर मिलते है किसी दिन किसी और अन्दाज में तब तक खातिर बाय.
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