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मंगलवार, 3 जुलाई 2018

मधुबनी : सैनी पोखर को है जीर्णोद्धार कर पर्यटन से जोड़ने की जरूरत

विशेष (अनूप नारायण) : बिहार के तालाबों में  प्रदूषण और उसपर अतिक्रमण कोई नई बात नहीं है। मिथिलांचल के बहुत कम  तालाबों का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व है जो अन्य तालाबों से इसे अलग रखता है। ऐसा ही महाभारत कालीन एक तालाब है मधुबनी, बेनीपट्टी प्रखंड के शिवनगर गाॅव स्थित सैनी पोखर। लगभग ढाई एकड़ में गाॅंव के बीचों-बीच  स्थित इस पोखर के बारे में दंत कथा है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के काल में इस पोखर के समीप स्थित विशाल और अगम्य  सम्मी पेड़ पर गांडिव धनुष और अन्य अस्त्र शस्त्र रखकर विश्राम करते थे।इसी पोखर में नित्य स्नान पश्चात् जल भर गाण्डिवेश्वर महादेव की पूजा करते थे।इसी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण भारत और नेपाल के  साधु संत  लोग सालों भर  किसी समय इस क्षेत्र से गुजरने पर इस पोखर में डुबकी लगा गाण्डिवेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करने से नहीं चुकते  थे।माघ एवं सावन महीने में तो साधुओं और श्रद्धालुओं की भीड़ चरम पर  होती थी ।जेठ महीने में नागा साधुओं का जत्था प्रत्येक वर्ष डुबकी लगा कर विदा होते। परंतु कालांतर में ‌पोखर में पानी का संरक्षण नहीं होने के कारण साधु इस पोखर के कीचड़ का लेप लगाकर ही पूजा अर्चना करते अस्सी के दशक तक ऐसा देखा गया । दुर्भाग्य से 1980 ईं  के बाद पोखरा का संरक्षण और साफ सफाई सही रूप से नहीं होने कारण साधु संतों के संख्या नगण्य हो गई। ग्रामीण लोग इसी पवित्र पोखर में श्राद्ध कर्म से लेकर छठ पूजा करते‌ हैं। दैनिक कार्य से लेकर सिंचाई तक‌ के लिए 2000ई तक खूब उपयोग किया जाता रहा।जो अब मात्र नीमित मत्स्य पालन और सीमित सिंचाई के लिए रह पाया है।घर घर चापाकल ने ग्रामीणों के इसके दैनिक जीवन में महत्त्व को तो गाॅंव में ही स्थित सरकारी सिंचाई बोरिंग मशीन ने सिंचाई के दृष्टिकोण से इसके महत्त्व को एकदम  खत्म सा कर दिया । श्राद्ध कर्म और छठ पूजा के उद्देश्य से ही अब  मात्र इसकी उपयोगिता  रह गई है।ग्रामीण स्व गिरीश चंद्र झा अपनी पुस्तक शिवनगर गाम गाथा में लिखते हैं कि इस पोखरे में पानी सालों भर रहे इस उद्देश्य से  गाण्डिवेश्वर स्थान के समीप बांध पर एक अस्थायी जल स्त्रोत बनाया गया था जिसका उपयोग नदी में पानी ज्यादा रहने पर किया जाता था ,कालांतर में स्वीस गेट भी इस जगह पर लगाया गया ।नदी के बांध से इस पोखरे तक पानी लाने के लिए सड़कों पर छोटी छोटी पुलिया और सड़कों के बगल में गहरे और चौड़े गढ़्ढे वाले नाली उड़ेही गई थी।इससे आसानी से पानी नदी से इस पोखरे तक लाया जाता था ।धीरे धीरे आबादी बढ़ ने के कारण इसे अवरूद्ध कर दिया गया।दूसरा स्त्रोत ग्रामीण विभिन्न क्षेत्र से वर्षा का पानी है।गुणानंद जी बताते हैं कि इसके संरक्षण के लिए उनके पिता व भूतपूर्व मुखिया स्व सत्तन झा ने साठ के दशक में लोगों से श्रमदान लेकर इस पोखरे की उराही और साफ सफाई करवाए ,उस समय दैनिक कार्यों के लिए जल का मुख्य स्त्रोत यही था । वहीं सी आर्ट काॅलेज के इतिहास विभागाध्यक्ष अयोध्यानाथ झा ने बताया कि उनके बड़े भाई                  ने सत्तर के दशक में इस पोखरे में जलकुंभी भरे रहने पर तत्तकालीन युवाओं की मदद से जीर्णोद्धार करवाया था। वहीं पोखरे के किनारे बसे शाउ जी जानकारी देते हैं‌ कि नब्बे के दशक में इस पर घाट का भी निर्माण हुआ ,बाढ़ में क्षतिग्रस्त होने पर ग्रामीण चंदा से एकत्रित फंड से ही मरम्मत का कार्य हुआ।
हाल‌  में ही ग्रामीण  मैथिल  साहित्यकार प्रो विभूति आनंद ने सोशल साइट्स पर इसके ऐतिहासिक महत्व को संक्षेप में बताते हूए  इसको जीर्णोद्धार के लिए युवाओं और सामाजिक समृद्ध व्यक्ति से गैर सरकारी व सरकारी तरीके से जीर्णोद्धार करने की अपील की है। ग्रामीण नंद झा  जी विचार रखते हैं कि सामूहिक प्रयास और निर्णय द्वारा इसका जीर्णोद्धार संभव है जो गांव के लिए लाभकारी होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता व मैरीन चीफ इंजीनियर विनोद शंकर झा बताते हैं  कि मनरेगा का महत्तम दस लाख का फंड इसका जीर्णोद्धार तो कर लेगी परंतु यह फंड ऊंट के मुंह में जीर के फोरन सामान होगा ।जरूरत है एक बड़ी बजट,सुव्यवस्थित और टेक्नोलॉजी का उपयोग कर जीर्णोद्धार के साथ सौन्दर्यीकरण करने की जिससे कि इस क्षेत्र के पर्यटन को गाण्डिवेश्वर स्थान,वाणेश्वर स्थान,वाणगंगा ,यज्ञवन,अहिल्या स्थान,धीरेन्द्र और ताराकांत झा ज्न्म स्थान  आदि के साथ नया आयाम मिले ताकि पर्यटन और धार्मिक स्थलों का व्यापक विकल्प मिले।
03/07/2018, मंगलवार

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