
आधुनिक वनस्पति विज्ञान के विकास से हजारों साल पहले हमारे मनीषियों ने इंसान और वृक्ष के अंतरसंबंधों को न सिर्फ गहराई से जीया, बल्कि मानवता को यह सीख भी दी कि पानी और पेड़ हमारे अस्तित्व की आखिरी गारंटी है।
शायद यही कारण है जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड अंतर्गत आने वाले एक छोटे से पंचायत 'मौरा' के कुछ ग्रामीणों ने पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों को शीर्ष प्राथमिकताओं में विद्यमान किया है।
शायद यही कारण है जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड अंतर्गत आने वाले एक छोटे से पंचायत 'मौरा' के कुछ ग्रामीणों ने पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर मुद्दों को शीर्ष प्राथमिकताओं में विद्यमान किया है।
विश्व जनसंख्या दिवस पर पर्यायवरण के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए नुनूमणि झा ने कहा कि बढ़ती जनसंख्या ने लोगों के जरूरतों को भी बढ़ा दिया है। अपने आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्रतिदिन पेड़-पौधों को अपना शिकार बनाकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है। बस इस कमी को पूरा करने के लिए हम और हमारी टीम के ओर से पर्यावरण हित में एक छोटा सा प्रयास है।
[पौधे के जड में फूंकी गई जान]
मौरा की धरती का हरित श्रृंगार करने का यह सफर वर्ष 2016 में नुनुमणि झा के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था। यह वो समय था जब नूनूमणि झा ने अपने लगन और मेहनत से बंजर पड़े जमीन में सैंकडों पेड़-पौधों को जीवनदान देकर नए-नए रोपित किए गए पौधों के जड में इन्होंने जान फूंकी थी। आज मौरा के इस जगह की हरियाली नूनूमणि झा के अथक प्रयास की दास्तां ब्यान कर रहा है।
[बढ़ रहा है कारवां, मुहिम में जूट रहे लोग]
कुछ दशक पूर्व जब मौरा की हरियाली अपने चरम सीमा पर थी, तब ग्रामीणों के लिए यह अकल्पनीय था कि इस धरती पर हरियाली फिर कभी लौट सकेगी। इस मुहिम की शुरूआत से धीरे-धीरे इन कल्पनाओं ने वास्तविकता का रूप लेना आरंभ किया। और देखते ही देखते मौरा गांव के स्थानीय निवासी सह इस मुहिम के नेतृत्वकर्ता नुनूमणि झा के ग्रामीणों एवं युवाओं का सहयोग प्राप्त होने लगा है।
इनके दिशा निर्देश पर हर महीने मौरा की धरती पर दर्जन भर पौधरोपण कर इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस जुलाई माह के शुरूआत में भी स्थानीय कुछ ग्रामीणों ने श्री झा के इस मुहिम में सहभागिता निभाते हुए तकरीबन दो दर्जन फलदार वृक्ष लगाया ।
इनके दिशा निर्देश पर हर महीने मौरा की धरती पर दर्जन भर पौधरोपण कर इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस जुलाई माह के शुरूआत में भी स्थानीय कुछ ग्रामीणों ने श्री झा के इस मुहिम में सहभागिता निभाते हुए तकरीबन दो दर्जन फलदार वृक्ष लगाया ।
[अपने वेतन से खरीदते हैं पौधे]
देवघर के एक निजी कंपनी में कार्यरत नुनूमणि झा अपनी तनख्वाह से ही कुछ राशि संग्रह कर पौधे को खरीदते हैं, तथा अपने गांव मौरा आकर इसे रोपित कर हरियाली के ग्राफ को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। बताया जाता है कि, अब तक तकरीबन 150 पौधे लगाए जा चूके हैं, जिसमें तकरीबन 90 पौधे स्वस्थ व सुरक्षित हैं।
[पौधे के पेड़ बनने तक जारी रहता है देखरेख]
इस मुहिम में रोपित किए गए पौधे को तबतक देखरेख किया जाता है जबतक यह पौधे पेड़ का रूप धारण न कर लें। नुनूमणि झा बीच बीच में अपने इस कार्य का जायजा लेने अपने पैतृक गांव आते रहते हैं। इनके मुहिम में सहभागिता निभा रहे युवा ऋषभ, विक्की प्रीवीण, छोटू, चंदन आदि ने बताया कि श्री झा के सान्निध्य में पौधरोपण कर हम युवाओं को भी प्रकृति और पर्यावरण से धीरे धीरे लगाव होने लगा है। अपने दिनचर्या से समय निकालकर हम युवा इन पौधों के संरक्षण हेतु प्रयासरत रहते हैं।
[विभाग से नहीं मिल रहा है सहयोग]
इस संदर्भ में पूछे जाने पर इस मुहिम के नेतृत्वकर्ता नुनूमणि झा ने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए बताया कि हम और हमारी टीम ने बीते 25 महीनों में 8 दर्जन से भी अधिक पौधों को जीवनदान देने का काम किया। इसके बावजूद संबंधित विभाग के तरफ से हमलोगों को अपेक्षित सहयोग नही मिल पा रहा है। पास के नदी से पानी लाकर पौधों की सिंचाई कर रहे है।
श्री झा ने संबंधित विभाग से पटवन हेतु उपयुक्त साधन की मांग करते हुए कहा कि संबंधित विभाग द्वारा यदि शीघ्र ही पटवन की कोई समुचित व्यवस्था न की गई तो सैंकडों पौधे जल की आस दम तोड़ देंगे और हरियाली के मेरे इस मुहिम पर ग्रहण लग जाएगा।
श्री झा ने संबंधित विभाग से पटवन हेतु उपयुक्त साधन की मांग करते हुए कहा कि संबंधित विभाग द्वारा यदि शीघ्र ही पटवन की कोई समुचित व्यवस्था न की गई तो सैंकडों पौधे जल की आस दम तोड़ देंगे और हरियाली के मेरे इस मुहिम पर ग्रहण लग जाएगा।




