पटना (अनूप नारायण) : हमारे देश में चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने और पूर्ण उपचार मुहैया करवाने के काफी प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र कई बीमारियों की रोकथाम और ईलाज में पीछे हैं जिसमें से एक बड़ी समस्या है निःसंतानता । छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों में निःसंतानता के ईलाज के लिए आईवीएफ सेंटर्स की आवश्कता है। वर्ल्ड आईवीएफ डे पर इन्दिरा आईवीएफ के पटना सेंटर में अवेयरनेस समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर निःसंतान दम्पतियों और गर्भवती महिलाओं को उपहार दिये गये तथा पटना सेंटर के पहले आईवीएफ बेबी ने केक काटा। कार्यक्रम में सभी दम्पतियों को पौधे भी वितरित किये गये।
इन्दिरा आईवीएफ गु्रप के चैयरमेन डॉ. अजय मुर्डिया ने बताया कि आपाधापी व कैरियर बनाने के जुनून ने समाज में निःसंतानता बढ़ा दी है। इण्डियन सोसायटी ऑफ़ असिस्टेड रिप्रोडक्शन के अनुसार जनसंख्या के 10 से 14 फीसदी लोग निःसंतानता से प्रभावित हैं। प्रत्येक 6 दम्पती में से एक निःसंतानता से ग्रस्त है। वर्ष 2015 की हालिया रिपोर्ट कहती है कि देश में बच्चा चाहने की इच्छा रखने वाले 27.5 मिलियन दम्पती निःसंतानता से ग्रस्त है। इसमें 40 से 50 फीसदी की वजह महिला है और 30 से 40 फीसदी कारण पुरुषों का बढ़ा है। यह रिपोर्ट चैंकाने वाली और निःसंतानता से लड़ रहे भारत के लिए एक अलार्मिंग बेल है कि अगर हमने अपना रिप्रोडक्टिव हैल्थ केयर सिस्टम मजबूत नहीं किया तो आने वाले सालों में निःसंतानता एक गंभीर बीमारी बन जाएगी।
डॉ. अनूजा सिंह, स्त्री रोग विशेषज्ञ के अनुसार इनफर्टिलिटी की बढ़ती वजह शहरीकरण, पर्यावरणीय एवं जीवनशैली को प्रभावित करने वाले कारक हैं। पर्यावरणीय कारण में मिलावट, रासायनों का शरीर में जाना, प्रदूषित पानी एवं हवा है वहीं जीवनशैली के कारकों में तनाव, जरूरत से ज्यादा काम, कुपोषण, मोटापा, एल्कोहल, धूम्रपान देर से शादी होना व यौन संक्रमित बीमरियां गोनोरिया आदि है। भारतीय महिलाओं में इनफर्टिलिटी के मुख्य कारणों में पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम), ओवरियन सिंड्रोम, मोटापा, गर्भाशय की अंदरुदनी परत (एंडोमीट्रियम) के गर्भाश्य की दीवार के भीतर जाने से हुई सूजन, ट्यूब में ब्लॉकेज आदि है। यही नहीं, इनफरटाइल महिलाओं में से 18 फीसदी महिलाएं जननांगों की टीबी की शिकार है जो ट्यूब ब्लॉकेज व एंडोमीट्रियल क्षतिग्रस्त होने का एक बड़ा कारण है।
डॉ. दयानिधि, चीफ एम्ब्रियोलोजिस्ट, पटना के अनुसार पुरुषों में निःसंतानता की वजह शुक्राणुओं की गिनती कम होना, गति कम होना, नहीं होना अथवा शुक्राणु का टेस्टीज में बनना है। एम्स की एक स्टडी कहती है कि तीन दशक पहले जहां वयस्क पुरुष में स्पर्म काउंट 60 मिलियन प्रति एमएल. था वह घट कर 20 मिलियन प्रति एमएल. रह गया। रिप्रोडक्टिव हैल्थ की वल्र्ड कांग्रेस में भी प्रस्तुत किया गया कि तनाव, पर्यावरण एवं औद्योगिक प्रदूषण से पुरुषों में स्पर्म की गुणवत्ता कम हुई है। इण्डियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च आईसीएमआर के अनुसार इस समय की बढ़ती बड़ी बीमारियों में निःसंतानता शामिल हो गया है। भारत में रिप्रोडक्टिव हैल्थ सेवाएं अच्छी नहीं है। सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र बांझपन दूर करने में संसाधन रहित हैं। इनकी पीएचसी व सीएचसी पर सीमन परीक्षण जांच की सेवाएं तक नहीं है अधिकांश जिला हॉस्पिटल में भी निःसंतानता की जांचों की अत्याधुनिक लैब नहीं है।
डॉ. सुनीता, निःसंतानता एवं आईवीएफ विशेषज्ञ के कहा कि एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि गांवों और कस्बाई जनता संतान प्राप्ति के लिए कहां जाए, पर्याप्त प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल नहीं होना निःसंतानता की एक दुखद तस्वीर पेश करता है। यही वजह है कि ऐसी महिलाएं झाड़-फूंक, देवरों व टोने-टोटकों में फंस जाती है और देर से इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचती है। निःसंतानता की यह तस्वीर दर्शाती है कि देश में ज्यादा से ज्यादा इनफर्टिलिटी का इलाज करने वाले सेंटर खोलने की जरूरत है। सबसे ज्यादा जरूरत इस बात कि है कि ये सेंटर जनता के कस्बे, शहर के निकट खोले जाएं ताकि वे बेझिझक होकर समय व पैसा गंवाए अपना उचित इलाज करा सकें। आईवीएफ डे कार्यक्रम में 150 से अधिक दम्प्ती, डॉ. सोनाली, डॉ. अनुपम व डॉ. रीना रानी सहित कई लोग उपस्थित थे।
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