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रविवार, 27 मई 2018

आलेख : व्यवसाय का रूप ले रही है शिक्षा

gidhaur.com (आलेख) :- आज बिहार में निजी विद्यालयों की बढ़ रही मनमानी फीस और उसके मनमानी रवैया से हर सामान्य वर्ग परेशान है , कई मायनों में शिक्षा व्यवस्था भी प्रभावित हो रही है। आज निजी विद्यालयों में जिस कदर फीस की बढ़ोत्तरी हो रही है, कम आमदनी के लोग बच्चों को पढ़ाना तो दूर उस के बाउंड्री में जाने से परहेज कर रहे हैं। विशेषत: किसान वर्ग के बच्चों के लिए यह और जटिल समस्या बन जाती है।
जिस अभिभावक के दो तीन बच्चे पढ़ने वाले हो उनकी आमदनी का 70% पैसा स्कूल फीस में चला जाता है। सबसे बड़ा आश्चर्यजनक चीज यह है कि निजी विद्यालय स्कूल ड्रेस और किताबें भी अपने मनमाने दाम पर बच्चों को देने का शर्त रखते हैं और बाहर से ली हुई किताब को वह अमान्य कर देते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से हमने कई बार राज्य सरकार से आग्रह कर इस पर ध्यान देने की बात कही है। सरकारी स्कूलों में एक सरकारी दर निश्चय कर, बच्चों को स्कूल ड्रेस और किताबें बाजार से खरीदने की आजादी दे दी जाए ताकि उनका अतिरिक्त शोषण ना हो सके।
आम जनजीवन के लिए यह बहुत ही बड़ा चिंता का विषय बनता जा रहा है, अब तो दूसरा विकल्प यही है कि जिनके पास आमदनी बहुत ज्यादा है उनके बच्चे अच्छे विद्यालयों में पढ़ेंगे और जिनकी आमदनी कम है उनके बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ेंगे जहां जैसी व्यवस्था है उसी के अनुरूप उनकी पढ़ाई भी। इन विद्यालयों के मनमर्जी फीस से किसान वर्ग के बच्चे इन विद्यालयों से शिक्षा पाने से वंचित रह जाते हैं।
मैं माननीय बिहार सरकार का ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराना चाहता हूं कि निजी विद्यालयों में भी एक सामान्य फीस की दर तय कर दी जाए ताकि समाज के हर वर्ग एक सामान्य आमदनी वाले परिवार के लोगों के बच्चों की पढ़ाई हो सके।
जहां निजी विद्यालयों में बच्चों की फीस अत्यधिक ज्यादा है, वहीं वहां के शिक्षकों का वेतन अत्यधिक कम है। निजी विद्यालयों के शिक्षक अपनी अतिरिक्त आमदनी के लिए अपना जीवन भरण पोषण के लिए दरवाजे दरवाजे ट्यूशन पढ़ाने को मजबूर हैं। आज शिक्षा एक व्यवसाय के रूप में देखी जाने लगी है और व्यवसाय भी ऐसा कि सिर्फ उसका मालिक अधिक से अधिक फायदे के जुगाड़ में रहता है बाकी विद्यालय के स्टाफ शिक्षक और बच्चे सिर्फ नुकसान की तरफ रहते हैं यह बहुत ही बड़ा चिंता का विषय है। नीजि विद्यालयों द्वारा मुनाफे के इस खेल में किसान वर्ग के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बस एक कल्पना बनकर रह जाती है।

(रितेश सिंह)
प्रदेश उपाध्यक्ष, किसान प्रकोष्ठ,लोजपा
पटना | 27/5/2018, रविवार
www.gidhaur.com

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