Gidhaur.com (नालंदा) : जिले के चंडीपुर प्रखंड स्थित अनंतपुर गांव की अनिता देवी अपने जिले का एक चर्चित नाम हैं। उन्होंने अपनी सफलता से अपने परिवार की दशा तो बदल ही दी है, साथ ही अनेक महिलाओं के लिए तरक्की का एक नया मार्ग भी प्रशस्त कर दिया है। उनकी कहानी एक महिला के आत्मविश्वास, उसके जज्बे और काम के प्रति समर्पण की कहानी है। आज वह मशरूम उत्पादन में तो ऊंचाइयां छू ही रही हैं, मशरूम के बीज का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन कर रही हैं। इसके अलावा, वह सफलतापूर्वक मछली पालन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन और पारंपरिक खेती भी कर रही हैं। उन्होंने मशरूम के बीजों के उत्पादन के लिए मशरूम सीड लैब की स्थापना की है। उनके द्वारा उत्पादित मशरूम और मशरूम के बीज आसपास के जिलों में भी बेचे जाते हैं।
शुरुआत नहीं था आसान
लेकिन यह सब कुछ इतना आसान नहीं था। इस सफलता की राह संघर्षों से निकली है। अनिता देवी गृहविज्ञान में बीए थीं, लेकिन गांव की अन्य महिलाओं की तरह वह भी घर संभालने में ही जुटी थीं। उनके पति संजय कुमार ने बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए काफी हाथ-पैर मारे, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। फिर वह गांव में ही खेती करने लगे। उनके परिवार में सात लोग थे। किसी तरह गुजारा चल रहा था। लेकिन अनिता देवी का सपना था कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, ताकि वे जीवन में अच्छा कर सकें।
लेकिन यह सब कुछ इतना आसान नहीं था। इस सफलता की राह संघर्षों से निकली है। अनिता देवी गृहविज्ञान में बीए थीं, लेकिन गांव की अन्य महिलाओं की तरह वह भी घर संभालने में ही जुटी थीं। उनके पति संजय कुमार ने बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए काफी हाथ-पैर मारे, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। फिर वह गांव में ही खेती करने लगे। उनके परिवार में सात लोग थे। किसी तरह गुजारा चल रहा था। लेकिन अनिता देवी का सपना था कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, ताकि वे जीवन में अच्छा कर सकें।
इसी उधेड़बुन में वह नालंदा जिले के हरनौत स्थित कृषि विज्ञान केंद्र पहुंची। वहां के संचालक ने अनिता को मशरूम की खेती करने की सलाह दी। उन्हें भी लगा कि यह उनके लिए ठीक रहेगा। कृषि विज्ञान केंद्र के संचालक ने उन्हें कृषि तकनीकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा) के माध्यम से सबसे पहले रांची के कृषि विश्वविद्यालय में मशरूम की खेती प्रशिक्षण दिलाया। वहां अनिता देवी ने मशरूम उत्पादन की विधि, इसके लाभ आदि के बारे में सीखा। फिर उन्होंने राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर) और पंतनगर में कृषि विश्वविद्यालय में मशरूम उत्पादन तथा मशरूम बीज के उत्पादन के गुर सीखे। अपना काम शुरू किया और दिनोदिन सफलता हासिल करती चली गईं। फिर उन्होंने अपने गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 25 महिला किसानों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया, जो आज सफलता से मशरूम उत्पादन कर रही हैं।
डाली बदलाव की नींव
अनिता की अगुवाई में अनंतपुर और उसके आसपास के गांवों की महिलाएं अपने परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बदल रही हैं। उनका कहना है कि मशरूम की खेती से ग्रामीण अर्थव्यव्यस्था को भी प्रोत्साहन मिल रहा है और इसकी खेती में लगी महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। इस सफलता से उत्साहित अनिता ने ‘माधोपुर फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड’ की स्थापना की है और ऑर्गेनिक मशरूम की खेती से आसपास की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जोड़ने की कोशिश कर रही हैं। करीब 250 महिलाएं उनकी इस कंपनी से जुड़ी हैं। अनिता देवी ने पिछले कुछ सालों में नालंदा जिले के कई गांवों में घूम-घूम कर महिलाओं के कई ‘स्वयं सहायता समूह’ (सेल्फ हेल्प ग्रुप) का गठन भी किया है।
अनिता की अगुवाई में अनंतपुर और उसके आसपास के गांवों की महिलाएं अपने परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बदल रही हैं। उनका कहना है कि मशरूम की खेती से ग्रामीण अर्थव्यव्यस्था को भी प्रोत्साहन मिल रहा है और इसकी खेती में लगी महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। इस सफलता से उत्साहित अनिता ने ‘माधोपुर फार्मर्स प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड’ की स्थापना की है और ऑर्गेनिक मशरूम की खेती से आसपास की ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को जोड़ने की कोशिश कर रही हैं। करीब 250 महिलाएं उनकी इस कंपनी से जुड़ी हैं। अनिता देवी ने पिछले कुछ सालों में नालंदा जिले के कई गांवों में घूम-घूम कर महिलाओं के कई ‘स्वयं सहायता समूह’ (सेल्फ हेल्प ग्रुप) का गठन भी किया है।
नालंदा की जमीन मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त है और इसमें लागत का दो से तीन गुणा फायदा होता है। अनिता की सफलता से प्रेरित होकर आसपास के इलाकों की दूसरी महिलाएं भी मशरूम की खेती से जुड़ीं। अनिता इतने पर ही नहीं रुकीं। उन्होंने मशरूम की खेती में बीजों की कमी को दूर करने के लिए बीज का उत्पादन भी शुरू किया। बीज उत्पादन के लिए उन्नत तकनीक युक्त लैब स्थापित करने के लिए उन्हें ‘नेशनल हॉर्टिकल्चर मिशन’ की ओर से करीब 13.5 लाख रुपये का अनुदान भी मिला। आज अनिता के पति संजय भी उनकी टीम में शामिल हैं और उनके दोनों बेटे हॉटिकल्चर की पढ़ाई कर रहे हैं, जबकि बेटी बी.एड. का कोर्स कर रही है।
मिलने लगी है पहचान
अनिता देवी के काम को अच्छी पहचान भी मिलने लगी है। मशरूम की खेती में उनके योगदान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने उन्हें 2012 में नवाचार कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया था। फिर 2015 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली) ने उन्हें जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार से सम्मानित किया। मिल रहे नाम और दाम के बारे में अनिता का कहना है कि यह काम का पुरस्कार है। इन सम्मानों से उनमें और उत्साह पैदा हुआ है। वह भविष्य में इस काम में और बेहतरी लाने और ऊंचाइयों पर ले जाने की कोशिश करेंगी।
मिलने लगी है पहचान
अनिता देवी के काम को अच्छी पहचान भी मिलने लगी है। मशरूम की खेती में उनके योगदान के लिए बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर ने उन्हें 2012 में नवाचार कृषक पुरस्कार से सम्मानित किया था। फिर 2015 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली) ने उन्हें जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार से सम्मानित किया। मिल रहे नाम और दाम के बारे में अनिता का कहना है कि यह काम का पुरस्कार है। इन सम्मानों से उनमें और उत्साह पैदा हुआ है। वह भविष्य में इस काम में और बेहतरी लाने और ऊंचाइयों पर ले जाने की कोशिश करेंगी।
अनूप नारायण