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जानिए इन्हें : गिद्धौर की मोनालिसा, रिसर्च साइंटिस्ट की नौकरी छोड़ बनी शिक्षिका

Gidhaur.com (विशेष) : वह भी पढ़ना चाहते थे और अपने सपनों को नई उड़ान देना चाहते थे. लेकिन गिद्धौर जैसे छोटे से कस्बाई इलाके में रहकर पढ़ना संभव नहीं हो पा रहा था. घर की परिस्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाकर पढ़ सकें. इस वजह से उन्हें अल्पशिक्षा हासिल करने के बाद ही जीविकोपार्जन के लिए अपने गाँव से दूर बड़े शहरों में कमाने के लिए जाना पड़ता. लेकिन ऐसे में ही गिद्धौर की ही एक लड़की ने इन बच्चों की परिस्थिति को समझा और चेन्नई जैसे महानगर में अपनी जॉब छोड़कर अपने गृहनगर गिद्धौर में ही आकर इन बच्चों की आँखों में पल रहे बड़े-बड़े ख्वाबों को मुक्कमल करने की ठान ली.

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं गिद्धौर की मोनालिसा भारती के बारे में जो रिसर्च के क्षेत्र में अपने जमे-जमाए करियर को छोड़, अपने गाँव में ही रहकर यहाँ के बच्चों के भविष्य को सँवारने में जुटी हैं.
समस्तीपुर से अपनी बारहवीं तक की पढ़ाई करने के बाद मोनालिसा ने उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए चेन्नई शहर को चुना, जहाँ से उन्होंने बीई-बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई की. इस दौरान उन्होंने महावीर कैंसर संस्थान एवं शोध केंद्र, पटना में पद्मश्री डॉ. जितेन्द्र कुमार सिंह के मार्गदर्शन एवं डॉ. अखिलेश्वरी नाथ के संयोजन में 'बायो-इंस्ट्रुमेंटेशन, बायो-कैमिकल टेस्ट और स्विस अल्बिनो चूहों पर कीटनाशकों के प्रभाव' विषय पर शोध किया. जिसमें डॉ. अंजलि सिंह, डॉ. अरुण कुमार सरीखे शीर्ष स्तरीय डॉक्टरों के दिशा-निर्देश में बहुत कुछ जानने सीखने को मिला.

चेन्नई में अपनी शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही उन्होंने 'खाद्य जैव प्रौद्योगिकी और इसके अनुप्रयोगों में हालिया अग्रिमों' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में हिस्सा लिया. इसके अलावा मोनालिसा ने 'लाइफ स्किल एंड कम्युनिकेशन' कार्यक्रम पर अभिविन्यास प्रशिक्षण में भाग लिया.
कॉलेज के दिनों में ही मोनालिसा ने इनफ़ोसिस के सदस्यों के समक्ष पोस्टर प्रेजेंटेशन दिया जिसमें उन्हें खूब वाहवाही मिली. महावीर कैंसर संस्थान, पटना में 'जेनोमिक्स' सेमिनार में हिस्सा लिया. चेन्नई के एक रिसर्च इंस्टिट्यूट में आरएपीडी-पीसीआर का उपयोग करके एरोमोनस हाइड्रोफिला के डीएनए फिंगरप्रिंटिंग पर प्रशिक्षण परियोजना में भी अपना समय दिया. पटना में आयोजित हुए दो दिवसीय 'सुकॉन-कैंसर के लिए सभी को एकजुट करें' सम्मेलन में हिस्सा लिया. जहाँ कैंसर रोकथाम पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे प्रयासों पर परिचर्चा हुई.

मोनालिसा ने पढ़ाई के दौरान ही जीएलपी की भूमिकाएं, टीएससी की भूमिकाएं और जिम्मेदारियां, हेमेटोलॉजिकल मैलिगनेंसिस (ओनकोकोन) आदि विषयों पर प्रशिक्षण और संगोष्ठी में भी भाग लिया. चेन्नई के फ्रंटियर मेडीविल्ले रिसर्च इंस्टिट्यूट में 'क्या कीटनाशक शहरी क्षेत्र के लिए वरदान है?', 'कीटनाशक विषाक्तता, प्राथमिक चिकित्सा उपायों और उपचार' एवं 'मच्छरों पर कीटनाशकों का प्रभाव' संगोष्ठी में शामिल हुईं.

कॉलेज के दिनों में वो इंडियन सोसाइटी फॉर टेक्निकल एजुकेशन की सदस्य रहीं. वर्तमान में इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी की लाइफ मेम्बर हैं एवं सामाजिक संस्था मिलेनियम स्टार फाउंडेशन की फाउंडर ट्रस्टी मेम्बर हैं.
पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें पटना में रिसर्च स्टडी पर्सनल साइंटिस्ट के रूप में काम करने का मौका मिला. जिसमें उन्होंने स्विस अल्बिनो चूहों पर कैंसर का रिसर्च किया. सफल परीक्षणों के बाद मोनालिसा के कार्यों को देखते हुए उन्हें पदोन्नति देकर चेन्नई भेज दिया गया, जहाँ उन्होंने रिसर्च इंस्टिट्यूट में स्टडी साइंटिस्ट डायरेक्टर के रूप में अपना योगदान दिया.

इस दौरान उन्होंने एमएससी-एमएलटी की पढ़ाई की. लेकिन घर से दूर होने की वजह से मोनालिसा बिहार में ही नौकरी करना चाह रही थीं. ऐसे में पटना के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) से उन्हें लैब टेक्नीशियन के पद पर कार्य हेतु ऑफर मिला. जिसके बाद मोनालिसा चेन्नई को छोड़ पटना आकर काम करने लगीं.

पढाई के समय छुट्टियों में उनका अपने गृहनगर गिद्धौर आना जाना लगा रहता था. घर आने पर वो देखतीं की उनके मोहल्ले एवं गांव के अन्य बच्चे मैट्रिक के बाद की पढ़ाई के लिए हर रोज रेल अथवा सड़क मार्ग से 17-18 किलोमीटर दूर दुसरे शहरों में ट्यूशन या कोचिंग पढ़ने जाते थे. जिन बच्चों के अभिभावक आर्थिक रूप से सक्षम थे वो पटना-देवघर जाकर पढ़ाई करते थे. जो बच्चे पढ़ने नहीं जा पाते थे वो आगे की पढ़ाई छोड़ देते थे. इन सब दृष्टिकोणों को देखते हुए मोनालिसा ने गिद्धौर में ही रहकर बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया.
इस काम में उनका साथ दिया उनकी बड़ी बहन अपराजिता ने. जिनके दिशा-निर्देश में मोनालिसा ने उन्नति क्लासेज़, गिद्धौर नामक शिक्षण संस्थान का नींव रखा. जिसमें उन्होंने एकमात्र बच्चे से पढ़ाना शुरू किया. शुरुआत में जागरूकता की कमी और यह सोच कि लड़की क्या पढ़ाएगी!, अभिभावकों ने बच्चों को नहीं भेजा. लेकिन जिस एक बच्चे ने भरोसा कर मोनालिसा से पढ़ाई की, उसका रिजल्ट आने के बाद विद्यार्थियों की संख्या बढ़नी शुरू हुई. वर्तमान में मोनालिसा उन्नति क्लासेज़, गिद्धौर की एकेडेमिक डिपार्टमेंट की डायरेक्टर के रूप में काम कर रही हैं.
मोनालिसा ने यूके (ब्रिटेन) के रॉयल कॉलेज ऑफ़ फिजिशियन्स से अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन से प्रैक्टिस एसेंशियल्स का कोर्स पूरा किया. इसके अलावा ग्लैक्सो स्मिथ क्लाइन (GSK) के कफ़ एंटीबायोटिक रीविसिटेड साइंटिफिक प्रोग्राम में हिस्सा लेकर उन्होंने इस विषय पर नवीन अपडेट और जानकारी साझा किये.
मोनालिसा का कहना है कि लड़कियां लड़कों के बराबर नहीं बल्कि उनसे कहीं आगे है. बस जरुरत है उन्हें सही मार्गदर्शन और मौका देने का, जिसके बाद आसमान स्वतः उनके क़दमों में आ जाता है. गिद्धौर जैसे जगह में लड़कियों को हीन नजर से देखा जाता है. लोग मानते हैं कि लड़कियां केवल चूल्हे-चौकों के लिए ही बनीं हैं. लेकिन अब लोगों को अपने नजरिये और मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है. लड़कियां न केवल घर संभाल सकती हैं बल्कि मौका मिलने पर चारदीवारी से बाहर निकल पुरुषों से भी आगे जा सकती हैं.
फर्राटेदार हिंदी, अंग्रेजी के अलावा मोनालिसा को तमिल, मैथिलि और जापानी भाषा का भी ज्ञान है. उन्नति क्लासेज़, गिद्धौर के विद्यार्थी नित नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं. अपनी इस उपलब्धि का श्रेय मोनालिसा अपने पिता डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिन्हा एवं माता कामिनी सिन्हा को देती हैं. उनका कहना है कि अगर माँ-पापा का आशीर्वाद और साथ न मिला होता तो इस मुकाम को हासिल करना संभव न था.

सुशांत साईं सुंदरम
गिद्धौर      |       07/03/2018, बुधवार

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1 टिप्पणियाँ

  1. People like you are inspiration to others...just want to see a change in mind set of parents and support the higher education of girls in our locality instead of just considering them as a burden...you can further more support those girls in this cause...we are with you.

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