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गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

संपादकीय : 'बेटी बचाओ' - नारा या चेतावनी? सवाल अस्मिता का!

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संपादकीय | सुशान्त साईं सुन्दरम :
मनुस्मृति (३/५६) में वर्णित है - 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।

अर्थात - जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नहीं होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।

स्त्रियों के बगैर समाज, जीवन, सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। स्त्रियों का योगदान हमारे दैनिक जीवनचर्या की आवश्यकतापूर्ति के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है।
पौराणिक काल की बात करें तो कोई भी धार्मिक कार्य नारी की उपस्थिति के बगैर शुरू नहीं होता था। उक्त काल में यज्ञ और धार्मिक प्रार्थना में यज्ञकर्ता या प्रार्थनाकर्ता की पत्नी का होना आवश्यक माना जाता था। नारियों को धर्म और राजनीति में भी पुरुष के समान ही समानता हासिल थी। वे वेद पढ़ती थीं और पढ़ाती भी थीं। मैत्रेयी, गार्गी जैसी नारियां इसका उदाहरण हैं। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। यही नहीं नारियां युद्ध कला में भी पारंगत होकर राजपाट भी संभालती थी। कालांतर में जैसे-जैसे हमने अपनी संस्कृति को भूलना शुरू किया, उसका पतन होने लगा और इसका दुषप्रभाव महिलाओं पर भी पड़ा और उनकी स्थिति और खराब होती गई।

वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो नारी अस्मिता की रक्षा एक बड़ा मुद्दा है। दिनोंदिन जहां नारियां उपेक्षित की जा रही हैं, वहीं उनके मान-सम्मान पर वहशियों के दृष्टिपात से मानव सभ्यता पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ रहा है। प्रतिदिन कई खबरें बलात्कार, महिलाओं की हत्या, शोषण, दुराचार की विभिन्न माध्यमों से आती रहती हैं। हर रोज अखबार के हर पन्ने पलटने पर आपको ऐसी खबरें मिल जाएंगी। प्रसिद्ध अखबार दैनिक भास्कर प्रत्येक सोमवार 'नो नेगेटिव मंडे' के मोटो से अखबार निकालता है। इसका उद्देश्य है कि सप्ताह की शुरुआत यानी सप्ताह का पहला दिन सोमवार नकारात्मक न हो। बावजूद नो नेगेटिव मंडे के भी महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की खबरें मजबूरन उक्त अखबार को प्रकाशित करनी पड़ जाती है। कारण यह है कि ऐसी हर खबर को छुपाया भी नहीं जा सकता।
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(सुशान्त साईं सुन्दरम, एडिटर-इन-चीफ़, gidhaur.com)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सत्ता में आये तो उन्होंने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा दिया। अगर आज के समय में आप इसपर गौर करें तो समझ आएगा कि वास्तविकता में यह केवल नारा नहीं बल्कि चेतावनी है। 'बेटी बचाओ' आज के समय में माता-पिता और परिवारजनों की बड़ी चुनौती है। पहले के समय में जागरूकता के अभाव के कारण अभिभावक बेटियों को पढ़ने नहीं जाने देते थे। ऐसी मानसिकता थी कि बेटियां पढ़कर क्या करेंगी? करना तो उन्हें चूल्हा चौका ही है। हालांकि धीरे-धीरे लड़कियों की शिक्षा की महत्ता समझी गई और वे भी शिक्षा हासिल करने की दिशा में अग्रसर हो सकीं।

प्रतिदिन स्त्रियों के साथ होने वाले यौनाचारों की संख्या बहुत अधिक है। यहां मैं कोई आंकड़े नहीं दूंगा। क्यूंकि लॉजिकल तौर पर देखें तो जितने आंकड़े रिकॉर्ड में दर्ज हैं उससे कई गुना अधिक यौनाचार के मामले दबा दिए जाते हैं, छिपा दिए जाते हैं। समाज के डर, पारिवारिक मान, सम्मान, मर्यादा की सीमा रेखा के भीतर ही स्त्रियों के साथ हो रहे दुष्कृत्यों को दबा दिया जाता है। जो मामले सामने आते भी हैं उनमें से बेहद कम ही हैं जिसपर कार्रवाई होती है या आरोपी को सजा मिलती है। एक बड़ा कारण आरोपियों का पहुंच होना भी है। किसी न किसी वरद हस्त से आरोपी बच निकलते हैं।

प्रौढ़ होते इस राष्ट्र की बहुसंख्य जनसंख्या युवाओं की है। बावजूद इसके बलात्कार और स्त्रियों के साथ होने वाले दुराचारों पर कोई कड़ा कानून नहीं है। नियमतः देश में सरेआम बीच चौराहे पर फांसी की सजा देने की भी मनाही है। लेकिन समय की यह मांग है कि कानून व्यवस्था में दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के लिए कड़ी सजा की व्यवस्था की जाए।

पुष्यमित्र उपाध्याय की लिखी रचना है जो वर्तमान परिपेक्ष्य में स्त्रियों को स्वयं ही अपनी रक्षा के लिए प्रेरित करती है - 'सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयंगे।' कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीतने वाली गिद्धौर की बेटी श्रेयसी सिंह निशानेबाज हैं। वे सटीक निशाना लगाती हैं। लड़कियों को अब शस्त्र उठा ही लेना आवश्यक है। बेटी पढ़ाओ का तात्पर्य केवल उनकी किताबी शिक्षा नहीं रहनी चाहिए। बेटियों को आत्मसम्मान की रक्षा के लिए भी तैयार किया जाना चाहिए। क्योंकि ये तो तय है कि यह समाज, सरकार और व्यवस्था उनकी अस्मिता की रक्षा करने योग्य न रही।

'छोड़ो मेहँदी खड्ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे।'

(ये लेखक के निजी विचार हैं. सुशान्त साईं सुन्दरम gidhaur.com के एडिटर-इन-चीफ़ हैं)
इलस्ट्रेशन साभार : रजनी कुमारी

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