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बुधवार, 2 सितंबर 2020

कवि कथा - १ : महाकवि अयोध्या सिंह हरि औध के सम्मान में अवनींद्र नाथ का नाम रखा गया 'कवि'

विशेष : जमुई जिलान्तर्गत मांगोबंदर के निवासी 72 वर्षीय अवनींद्र नाथ मिश्र का 26 अगस्त 2020 को तड़के पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. स्व. मिश्र बिहार विधान सभा के पूर्व प्रशासी पदाधिकारी रह चुके थे एवं वर्तमान पर्यटन मंत्री के आप्त सचिव थे. स्व. मिश्र विधान सभा के विधायी कार्यो के विशेषज्ञ माने जाते थे. इस कारण किसी भी दल के मंत्री उन्हें अपने आप्त सचिव के रूप में रखना चाहते थे.

अवनींद्र नाथ मिश्र जी के निधन के बाद उनके भाई एवं गिधौरिया बोली के कवि व हिंदी साहित्य के उच्चस्तरीय लेखक श्री ज्योतिन्द्र मिश्र अपने संस्मरणों को साझा कर रहे हैं. स्व. अवनींद्र नाथ मिश्र का पुकारू नाम 'कवि' था. ज्योतिन्द्र मिश्र जी ने इन संस्मरणों को 'कवि कथा' का नाम दिया है. इन्हें हम धारावाहिक तौर पर gidhaur.com के अपने पाठकों के पढने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अक्षरशः श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी के लिखे शब्दों में ही है. हमने अपनी ओर से इसमें कोई भी संपादन नहीं किया है. पढ़िए यहाँ...

कवि -कथा (१)
जिस भ्रातृ भाव से राम ने अनुज लखन को जग में न मिलिहें सहोदर भ्राता कहा होगा , उसी भाव से स्मृति शेष अनुज अवनींद्र नाथ मिश्र उर्फ कवि मेरे सहोदर भाई थे । कवि के पिता स्मृति शेष पशुपति नाथ मिश्र प्रफुल्ल शास्त्री एवम मेरे पिता श्री उपेंद्र नाथ मिश्र दोनों सहोदर भाई थे। दोनों के उम्र में 14 साल का अंतर । इसी तरह कवि की माता स्मृति शेष अन्नपूर्णा मिश्रा एवम मेरी माता स्मृति शेष शकुंतला मिश्रा दोनों सहोदरा थीं।दोनों में वही 14 साल का अंतर। हम दोनों। भाइयों में गिनकर छः महीने का अंतर। हम एक साथ पले बढ़े । कहने को लोग हमें जुड़वां भी समझते थे। उस वक्त बड़े बाबूजी ही जिला परिषद मुंगेर के अधीन वैद्य के पद पर नियुक्त थे । पेशे से वे वैद्य थे लेकिन वे कवि आरसी प्रसाद सिंह , दिनकर, हवलदार त्रिपाठी , पोद्दार रामावतार अरुण के अनन्य भी थे। दरभंगा जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के मंच पर इनकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती थी।साहित्याचार्य और आयुर्वेदाचार्य दोनों थे ।हमारा प्राथमिक लालन पालन बड़े बाबूजी के सिद्धाश्रम में ही हुआ। बच्चों के नामाकरण का दायित्व भी संयुक्त परिवार के मुखिया पर ही था ।
1957 में जब हम दोनो का नामांकन छठी क्लास में हुआ तो बड़े बाबूजी ने मेरा नाम ज्योतीन्द्र और भाई का नाम अवनींद्र लिखवा दिया। उन्होंने बताया कि यह दोनों नाम कविगुरु रवींद्र नाथ टैगोर के भाइयों का नाम है। उनके हाथ में बंगला भाषा मे लिखी टैगोर की पुस्तक कंकावतीर घाट पढ़ते देखा करता था।
एक दिन मैंने जिज्ञासा की
भाई का नाम कवि क्यों है?
तब उन्होंने बताया कि महाकवि अयोध्या सिंह हरि औध ने प्रिय प्रवास नामक महाकाव्य लिखा है । 1947 में उनकी मृत्यु हो गयी। उस महाकवि के सम्मान में उसका नाम कवि रखा है।उल्लेखनीय है कि कवि का जन्म 11 जुलाई 1948 को हुआ था।
फिर पूछा यह कविता क्यों नहीं लिखता ?
बोले कि आगे पढ़ेगा तो लिखेगा भी।
लेकिन उनकी यह मंशा कभी पूरी नहीं हुई ।
कविता को वे पढ़कर समझ लेते लेकिन लिखने की कोशिश नहीं की। वे मैथ बनाते ।वाह वाही भी मिलती।
इधर मैं फिसड्डी निकला मैथ में।लेकिन कविता आ गयी मेरे हिस्से में। इस प्रकार बड़े बाबूजी का स्नेह भी मेरे प्रति बढ़ गया। कवि के जीवन में दूसरे अयोध्या को भी आने का अवसर मिला । ये हैं विधायी और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ श्री अयोध्या नाथ मिश्र । आप बिहार विधान सभा के पूर्व पदाधिकारी रहे तथा अभी भी पूरी सक्रियता के साथ झारखण्ड में सरकार के परामर्शी है। आप के निदेशन में ही हरि औध कवि के प्रतीक कवि विधायी कार्यों के विशेषज्ञ हो गए । वे कविजी को अनुज की तरह तरजीह देते थे । कवि में गुण ग्राही पात्रता थी । उन्होंने पूज्य अयोध्या नाथ जी से कुछ सीखा।
आज जब अयोध्या नाथ जी ने कवि जी के गोलोक वासी होने पर हार्दिक कष्ट का इज़हार किया तो कवि जी के जीवन में दो अयोध्या का संयोग समझ में आया।
क्रमशः


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