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शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

बंगाल में चल रहे "खून-खेला" के बीच तृणमूल सांसद नुसरत ने खेला "सिन्दूर-खेला"

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11 अक्तूबर : तृणमूल सांसद नूसरत जहाँ कोलकाता के चलताबगान दुर्गापूजा पंडाल पहुँचीं. वहाँ उन्होंने दुर्गापूजा के अवसर पर बंगाल में जगह-जगह खेले जाने वाले प्रसिद्ध "सिन्दूर-खेला" में भाग लिया. दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में विजयादशमी के दिन हुए "खून-खेला" से देशभर में तृणमूल कॉंग्रेस एवं ममता बनर्जी के खिलाफ रोष का माहौल है.


कोलकाता के चलताबगान दुर्गापूजा पंडाल में मीडिया कर्मियों से बात करते हुए सांसद नूसरत जहाँ ने कहा कि वे ईश्वर की विशेष पुत्री हैं,  वे सभी उत्सवों को मनाती हैं, उन्हें मानवतावाद में सबसे अधिक भरोसा है, और वे मानवतावाद को अन्य समस्त चीज़ों से अधिक प्रेम करती हैं. वे खुश हैं, और वे विवादों की परवाह नहीं करतीं.

इस अवसर पर नूसरत के साथ उनके पति निखिल जैन भी मौजूद थे.

विदित हो कि पश्चिम बंगाल कई महीनों से अशांत चल रहा है. अलग-अलग सूत्रों से उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे के साथ-साथ राज्य में हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहती है. इसका उसे राजनैतिक लाभ भी नज़र आ रहा है. आज पश्चिम बंगाल में पहले की अपेक्षा अधिक लोग भाजपा के पक्ष में गोलबंद हुए हैं.

दूसरी तरफ तृणमूल कॉंग्रेस, वहाँ की राज्य सरकार एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जो रूख़ पिछले कई महीनों से दिख रहा है, उससे ऐसा ही प्रतीत होता है कि वे लोग भी भाजपा के हिंसा का जवाब हिंसा से ही देना चाहते हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी अपने भाषणों में कई बार "सबक सिखा देंगे" जैसी बातें बोलती हुई नज़र आती हैं. किंतु दोनों पक्षों में एक बहुत ही मूलभूत अंतर है, और वह अंतर यह है कि भाजपा एवं उससे जुड़े संगठन हिंसा की बात नहीं करते, बल्कि अपने को याचक जैसी स्थति में आम जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं, जबकि दूसरी तरफ खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही मंच से ऐसी बातें बोलती हैं जैसे कि वे रण में युद्ध को तैयार हैं. साथ-ही-साथ, राज्य की सरकार राज्य में हो रही हिंसक घटनाओं को रोक पाने में भी नाकामयाब है. ये स्थितियों में कुल मिलाकर भाजपा के बढ़ते हुए जनाधार और तृणमूल कॉंग्रेस के पतन की ओर ही इशारा करती हैं.

आज पश्चिम बंगाल से कॉंग्रेस के सांसद अधीर चौधरी ने भी राज्य की विधि-व्यवस्था को लचर बताते हुए राष्ट्रपति शासन की माँग कर दी है.

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ऐसी परिस्थितियों में तृणमूल कॉंग्रेस अपनी सांसद नूसरत जहाँ को "सौहार्द्र के तुरूप का पत्ता" के रूप में उपयोग कर सकती थी. सांसद बनने के बाद नूसरत की गतिविधियाँ एवं स्वभाव "सौहार्द्र के प्रतीक" के रूप में उपयुक्त भी नज़र आती हैं. किंतु इसके लिए उनके दायरे को दुर्गापूजा के पंडालों से बढ़ाकर मुर्शिदाबाद जैसे इलाक़ों तक ले जाने की ज़रूरत है. "ईश्वर की विशेष पुत्री" को बातों के साथ-साथ कार्यों से भी "मानवतावाद से प्रेम" का इज़हार करना चाहिए, और शायद बंगाल में यह अभी अतिआवश्यक भी है. 


(पत्रकार धनंजय कुमार सिन्हा की रिपोर्ट)
DKS

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