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लक्ष्मीपुर के किसानों को अब तक नहीं मिला धान का बीज

लक्ष्मीपुर (प्रवीण कुमार मंडल) :-
'का वर्षा जब कृषि सुखाने' वाली कहावत प्रदेश के कृषि महकमे पर बखूबी लागू होता है। प्रदेश में कृषि के विकास और किसानों के आर्थिक उन्नयन के लिए सरकार की ओर से बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन योजनाओं को जब समय पर लागू करने की बात आती है तो यह नौकरशाही के मकड़जाल में फंसकर दम तोड़ देती है।


इसी तरह कृषि उपज बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से किसानों को रबी व खरीफ फसलों के लिए सस्ते दर पर उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए जाते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि किसानों को सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाने वाला बीज व उर्वरक कभी समय पर नहीं मिल सका है। इस वर्ष भी यही हाल देखने को मिल रहा है। जिले में रोहिणी नक्षत्र में धान का बिचड़ा गिराने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। इसके लिए किसान कड़ी धूप में अपना पसीना बहाकर अपने खेतों को तैयार करते हैं, लेकिन समय पर सरकारी बीज आदि नहीं मिलने पर बाजार से ऊंची दरों पर बीज की खरीदारी करने को मजबूर होते हैं। बाजार में उपलब्ध बीज की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं होती। जिले में धान का बिचड़ा गिराने का काम शुरू हो गया है। लोगों का कहना है कि अगर सरकार के भरोसे रहेंगे तो खेती नहीं कर सकेंगे।

-- लक्ष्मीपुर में 58 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य--

जिला कृषि पदाधिकारी संजय कुमार ने बताया कि वर्ष 2019-20 में जिले में कुल 60 हजार हेक्टेयर भूमि में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है।  इसके लिए   खरीफ कार्यशाला का आयोजन कर किसानों को जानकारी दी गयी है।

क्या कहते हैं किसान -

सरकार किसानों के हित में घोषणाएं बहुत करती है लेकिन उसे लागू नहीं करती। आज तक सरकार की ओर से समय पर खाद बीज नहीं मिला है। घर में रखा बीज या बाजार से खरीदकर काम चला रहे हैं।

( पवन साह, किसान) :-  सरकार से सस्ती दर पर उन्नत बीज मिल जाता तो धान की ऊपज भी अच्छी होती। अभी तक पैक्सों में बीज नहीं आया है। देर से बिचड़ा गिराने से धान में रोग लगने का डर रहता है।

(पप्पल झा, किसान) :- रोहण नक्षत्र बीता जा रहा है। खेत तैयार कर बैठे हैं, लेकिन सरकारी खाद बीज का कोई अता-पता नहीं है। हर साल यही किस्सा रहता है। बाजार से ऊंचे दाम पर बीज खरीदने को मजबूर हैं।

(रमाकांत सिंह, किसान) :-  सरकार किसानों के लेकर गंभीर नहीं है।  एक भी साल समय पर खाद बीज नहीं मिला है। समय बीत जाने पर पैक्स में बीज आता है जिससे किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पाता। बाद में औने -पौने दाम पर इसकी नीलामी कर दी जाती है।