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आलेख : बेबस और बेसहारा है बेचारा !


आलेख :- राहुल कुमार, अलीगंज(जमुई)  :-

सुबह सूरज के निकलते ही वो बेचारा आता और दरबाजे के बाहर से ही आवाज लगाता ...खाने के लिए दे दो भैय्या!
दो-चार बार दरबाजा खटखटाने पर रामू झल्लाते हुए बाहर निकलता "जाते हो या नही! राम-राम के बेला मे दिमाग खराब करने के लिए आ जाते हो।
लो काँप सा जाता है और उसकी आंखे देखना चाहती है घर के बड़े सदस्य रामू के मालकिन को! भागतो हो या अपनी छड़ी निकालु रामू बाहर आता है। वह भी तेज कदमो से रोते हुए भागता है। आगे जाकर रूक जाता है। जहां से वह देख पाये कि रामू वापस गया की नहीं। जब रामू अंदर चला जाता है तो फिर वो जोर से चिल्लाता है ताकि घर की मालकिन सुन ले। मालकिन कभी भी सुन लेती रसोईघर मे बचा खाना शायद थर्माकोल के थाली मे, लाकर दे देती थी।
मालकिन 'आप  झूठे लोगो से लगाव मत रक्खा किजिये।"सब फ्री मे खाना चाहता है।
हमको मत सिखाओ।  वेशभूषा पर कभी गौर किया- उसके बालो मे कई दिनो से तेल कंघी नही लगे
 है जरूरत भर कपड़े भी नहीं पहने हुए रहता।
लेकिन आज मालकिन सुन नहीं रही थी रात मे अचानक बुखार चढ गई थी। आधि रात के बाद नींद आई। देर तक चिल्लाने पर भी मालकिन नहीं दिखी तो वह रोते हुए कहा "रामू भैय्या क्या हुआ? मालकिन कहीं चली गई क्या ?" तुमको क्या लेना-देना देना चल निकल पतली गली से, "रामू ने रगेदते हुए भगाया।
वो थोड़ी दुर भागकर एक बंद गुमटी के पीछे छिप गया
  मालकिन जब जागी तो साढ़े आठ बज चुके थे। मुझे उठाने क्यो नही सिध्दु ने कहा " माँ तुम्हारी तबियत खराब थी इसलिए। ..पर...अब ठीक हूं
सिध्दु की मां कमरे से बाहर आयी। देखा बच्चे लोग बनढन के पढ़ने जा रहे है। तभी लगा दरबाजे के बाहर से कोई देख रहा है। कोई है ? वो बोली वह दरबाजे के किनारे हो गया। वो पास पहुंची तो देखा वो आंखो मे नमी लिए खड़ा है।
"यहां खड़े क्या कर रहे हो आज हमारे घर से किसी ने रोटियां नही दिया क्या ?
वो वैसे ही देखता रहा। ..थोड़ी देर बाद बोला नहीं आंटी! रोटी सब्जी के बास्ते नहीं खासकर  आपसे मिलने आता हूं। आज कित्ता चिल्लाया तुम ना आई, मै डर सा गया था। मेरी मम्मी कहती थी कि तु डर मत और एक दिन मै कितना रो-रोकर कहा" ,एक बार उठ जाओ मम्मी,पर नहीं उठी ओ हमेशा के लिए सो गई थी। मेरी मम्मी तोहरे तरह थी आंटी"।आप मे मम्मी की एक झलक देख पाता हूं। वो छोटे इतनी बाते दो-तीन साँस मे ही कह गया था।
मालकिन डबडबाई आंसू को लूढकने से पहले ही पल्लू से पोंछते हुए पूछा- मेरी ही तरह सो कैसे ? रोज जिस तरह रामू भैयाके मना करने पर भी रोटियां देना नहीं छोड़ते है , मेरी मम्मी भी  मेरे मना करने पर भी खिलाए जाती थी। अब समझी, प्रतिदिन  रामू के दुत्कार फटकार सुनने के बाबाजुद यहां किसलिए आता है।
रोटी बगैरह लेते आना मालकिन ने आवाज लगाई। आओ आ जाओ अंदर। छोटे तुम्हारा नाम?  " जी आंटी विश्वास। तभी रामू आ जाता है, "अरे तुम बचा हुआ खाना लेकर नहीं आया? उसे उसे तो मै कपड़े मे फेंक दिया ? रामू ने कहा"।
मालकिन झुँझलाकर बोली
कितने नासमझ इंसान हो बेचारे को रोटी खाने नहीं मिलता और तुम कचरे मे डाल आया।
सिध्दु सोर सुन आँफिस जाने के लिए तैयार होकर निचे उतरा।
क्या बात है ये हल्ला किसलिए ?
उसकी नज़र घर मे दाखिल उस लड़के पे गया। "मै कहता था कि ऐसे लड़को को दूर ही रख्खा करो पर माँ समझे तब ना,"
क्या किया तुमने? विश्वास घबरा  गया।बिना बात जाने इसे क्यों डाट रहे हो?
तो फिर बताओ क्या हुआ? कहूंगा तो बूरा लगेगा- सरकार इतनी पेंशन देती है उसे हम बेसहारा लोगो को थोड़ा दे भी दे तो हमारा क्या चला जाएगा। सीने पर लादकर ले तो नहीं जा सकते और रामू इसे रोज भगाता रहता है।
माँ की इस बातो को सुनकर सिध्दु  वहां से जाना ही ठीक समझा और गन्तव्य की ओर चल दिये।                    विश्वास पढ़ने जाते हो? हाँ आंटी   स्कूल जाते है। आज लेट हो गया कल से जाएगे। दूर से ही रामू बड़ी आंखे बना रहा था की चल भाग यहाँ से। छोटे कुछ पूरानी किताबे है लेते जाओ। विश्वास के जाते ही मालकिन ने कहा- तुम्हे तो उसपर दया आनी चाहिए थी। क्योंकि वह भी तुम्हारे जैसा है। इसके जगह तुम होते तो कैसा लगता रामू?  ऐसी बात नहीं है "मालकिन बल्कि डरता हूं की वो इसी तरह मजबूरी जाहिर करके यहीं ना रह ले और मुझे जाना पड़े..।
  मालकिन खामोश थी। वे रामू के अंतर्मन को भाप चुकी थी। 


उक्त आलेख लेखक द्वारा स्वरचित है और इसी पोर्टल के लिए लिखा गया है।