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धर्म : बिहार के प्रमुख शक्तिपीठों की करें दर्शन, पूरी होंगी मनोकामनाएं

आज हम आपको बिहार के कुछ प्रमुख शक्तिपीठों के दर्शन करवाने जा रहे हैं. आशा है डिजिटल माध्यम से दर्शन कर भी आपको असीम धार्मिक सुख की अनुभूति होगी...

संकलन : अनूप नारायण / पटना

बड़ी पटनदेवी
पटना के महाराजगंज में स्थित बड़ी पटनदेवी महत्त्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि सती के शरीर का दाहिना जंघा महाराजगंज में गिरा था और यहीं से उत्खनन में मिली महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की तीन प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। यहां शक्तिदेवी सर्वानंदकारी एवं भैरव भी प्रतिष्ठित हैं। इस स्थल को बड़ी पटनदेवी का नाम दिया गया है। पटन देवी की सभी प्रतिमाएं काले पत्थर की बनी हैं। छोटी पटनदेवी बड़ी पटनदेवी से तीन किमी पर स्थित हाजीगंज क्षेत्र में छोटी पटनदेवी मंदिर स्थित है। यह भी एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां देवी सती का पट और वस्त्र गिरा था। जहां वस्त्र गिरा था वहां पर मंदिर बनाया गया और माहालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की प्रतिमाएं स्थापित की गई। मंदिर परिसर के पश्चिम बरामदे में स्थित कुंए को ढक कर वेदी बना दी गई है। कहा जाता है कि छोटी पटनदेवी मंदिर का निर्माण 11वीं-12वीं सदी में हुआ था। मुगल बादशाह अकबर के सेनापति राजा मानसिंह ने 1574 ई में इसका जीर्णोधार कराया था। फिर भक्तों ने भी इसका पुननिर्माण कराया। पटना के दिनों देवी स्थान धर्मावलंबियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। दोनों मदिरों में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। इस मंदिर में नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं को देवी माँ के आशीर्वाद के लिए लाया जाता है। शीतला मंदिर बिहारशरीफ से पश्चिम एकंगरसराय पथ पर मघरा गांव में स्थित प्राचीन शीतला मंदिर भी प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहां सती के हाथ का कंगन गिरा था। आस्था है कि शीतला मंदिर में जल अर्पित करने से कई प्रकार की बीमारियां दूर हो जाती हैं। मंदिर के पश्चिम दिशा में एक प्राचीन कुंआ है। इस कुंए से ही माँ शीतला की प्रतिमा मिली थी। माँ मंगला गौरी मंदिर गया-बोध गया मार्ग पर स्थित भस्मकुट पर्वत पर माँ मंगला गौरी का मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहां देवी सती का स्तन गिरा था। ऊँचाई पर मंदिर अवस्थित होने के कारण पथरीले जगह को सीढीनुमा बनाया गया है। इस मंदिर पर चढ़ने के लिए 115 सीढ़ियां बनाई गई हैं। मंदिर का दरवाजा काफी छोटा है। झुक कर मंदिर में प्रवेश करना पड़ता है। देवी यहां माहालक्ष्मी स्वरूप में हैं। इस पीठ को साधु ‘पालनपीठ’ के रूप में मानते हैं।1350 ई में माधवगिरी डंडी स्वामी द्वारा निर्मित इसके गर्भगृह में अखंड दीप जलता रहता है। इस शक्तिपीठ पर मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म कर सकता है। इस मंदिर परिसर में कई देवताओं की मूर्तियां हैं। चामुंडा मंदिर नवादा-रोह-कौआकोल मार्ग पर रुपौ गांव में स्थित चामुंडा मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। मान्यता है कि देवी सती का सिर यहीं कट कर गिरा था। इस मंदिर में देवी चामुंडा की प्राचीन मूर्ति स्थापित है।यहां हर मंगलवार को श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। दूर-दूर से लोग यहां पूजा करने आते हैं। चामुंडा मंदिर से पश्चिम-दक्षिण एक प्राचीन गढ़ पर स्थित शिव मंदिर में प्राचीन शिवलिंग स्थापित है। यह बीस फीट ऊँचा है। मंदिर परिसर बारह एकड़ की भूमि में फैला है। रूपों गांव की पहचान पुरातात्विक स्थल के रूप में होता है। इस गांव में कई प्रचीन मूर्तियां भी मिली हैं। मार्केण्डेय पुराण के अनुसार चण्ड-मुण्ड के वध के बाद ही देवी दुर्गा चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुईं। अंबिका भवानी छपरा- पटना मुख्य मार्ग पर आमी स्थित अंबिका भवानी मंदिर प्राचीन धार्मिक स्थल है। पूरे भारत वर्ष में मात्र एक ही ऐसा मंदिर है जहां की मूर्ति नहीं है। इसे देवी सती के जन्म और मृत्यु स्थल के रूप में मान्यता मिली हुई है। कहा जाता है कि यहां देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति का राज्य था। देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान विष्णु ने जब चक्र से उनके अंगों को काटकर अलग-अलग कर दिया था और उनके अंग जिस स्थान पर गिरे वह शक्तिपीठ बन गया। लेकिन माँ सती का शरीर भस्म को कर यहीं रह गया था। इस स्थान पर ही मंदिर का निर्माण हुआ था। मंदिर काफी प्राचीन है और यहां एक प्राचीन कुआं भी है। इस कुएं से कई प्राचीन मूर्तियां, एक बड़े आकार की मूर्ति और एक दक्षिण्मुखी शंख भी मिला था जिस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति बनी हुई थी। यहां हर वर्ष चैत मास में एक बड़ा मेला लगता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार राजा सुरथ ने भगवती की पूजा यहीं की थी।
माँ ताराचंडी सासाराम से 6 किमी कि दूरी पर कैमूर पहाड़ी की गुफा में ताराचंडी माँ का मंदिर है। जो 51 शक्तिपीठों में एक है। परशुराम बालिका भगौती के रूप में प्रकट होकर राजा सहस्त्रबाबू को पराजित किया था। इसी बालिका पर माँ ताराचंडी देवी का नाम पड़ा। ऐसा माना जाता है कि श्री राम के लिए हनुमान ने जिस पर्वत से संजीवनी बूटी लाई थी वह पर्वत यही है। यह भी धारणा है कि माँ सीता ने यही महिषासुर को मारा था। ताराचंडी के अलावे यहाँ मुन्डेश्वरी माँ की काले रंग की मूर्ति भी है और इसके अलावे कई और देवी देवताओं की मूर्तियां यहाँ स्थापित हैं। इस मंदिर के नजदीक चार झरने हैं जो सीता कुंड और माझरमुंड के नाम से जाने जाते हैं। माँ चण्डिका देवी मंदिर मुंगेर ज़िले में गंगा तट पर स्थित माँ चण्डिका देवी का मंदिर भी प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। इस स्थल पर माता सती की दांया आँख गिरी थी। यहां मुख्य मंदिर में सोने से गढ़ी आँख स्थापित है। पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर की स्थापना का उल्लेख सतयुग से ही हुआ है। कहा जाता है कि यहां लंका विजय के बाद राम ने देवी की पूजा की थी। उग्रतारा स्थान सहरसा से 17 किमी दूर उग्रतारा शक्तिपीठ है। यहां देवी सती की बायां आँख गिरी थी। महर्षि वशिष्ठ ने चीनाचार विधि से देवी की घोर उपासना इस स्थल पर की थी। मंदिर में स्थापित भव्य बौद्ध तारा की मूर्ति पाल कालीन है। मंदिर का निर्माण मधुबनी के राजा नरेन्द्र सिंह देवी की पत्नी रानी पद्मावती ने लगभग पांच सौ वर्ष पहले करवाया था। मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर तथा छोटा द्वार पूर्व दिशा की ओर है। इस स्थान के उत्खनन में भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी मिली है जो पटना संग्राहालय में रखी गई है। 18वीं सदी के प्रसिद्ध दर्शनाचार्य मंडन मिश्र का जन्म इसी गांव में हुआ था। धीमेश्वर स्थान पूर्णिया से पश्चिम बनमनखी प्रखंड के धीमेश्वर स्थान स्थित छिन्नमस्ता देवी का मंदिर प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह स्थान तंत्र साधकों का प्रचीन साधना स्थल है। यहां माता स्ती का हृदय गिरा था। इस स्थान को हृदय नगर के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर भी है। आस्था है कि धिमेश्वर स्थान में राजा कर्ण पूजा किया करते थे। यह स्थान संत शिरोमणि परमहंस श्री मेंहीदास की भी जन्म स्थली है। इन शक्तिपीठों के अलावा पटना से 40 किमी करौटा स्थित माता जगदम्बा का प्रसिद्ध मंदिर है। प्रतेक मंगलवार और शनिवार को भक्तों की यहां अपार भीड़ लगती है। इस मंदिर में देवी माँ की मूर्ति पीपल वृक्ष के नीचे धड़ एवं सिरे के अंश रूप में दिखाई पड़ती है। मूर्ति स्पष्ट दिखाई नहीं देती है क्योंकि शेष हिस्सा वृक्ष के नीचे दबा है। चैत्र मास में यह स्थान मेले में परिवर्तित हो जाता है।

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