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झाझा : सामाजिक कार्यकर्ता सूर्यावत्स का आग्रह, दिपावली में जलाएं मिट्टी से बने दीप


झाझा/जमुई [इनपुट सहयोगी] :

दिपावली में मिट्टी से बने दीप को जलाने के लिए समाजसेवी सूर्यावत्स द्वारा अलग -अलग स्थानों पर कार्यक्रम चलाकर लोगों से इस दिपावली मिट्टी के दीप जला कर मनाने की अपील की। समाजसेवी श्री सूर्या वत्स ने बतलाया की आज के विद्युत आधारित जीवन में झाड़-फानूस जैसे प्रखर प्रकाश के होते हुए भी हम मिट्टी के दीपक ही दिपावली पर क्यों जलाते हैं। अंधियारे को दूर करता प्रकाश, जीवन की राह में रोशनी फैलाता है, दीपावाली का मतलब ही दीपो का त्यौहार होता है। बिना दीप के इस पर्व की कल्पना नहीं की जा सकती। आज से कुछ सालो पहले तक था भी कुछ ऐसा ही, हर घर में दीये जलतेे थे, लेकिन अब ये परपंरा महज औपचारिता में दायरे में सिमटती जा रही है। वजह साफ है चाईनीज लाईटिंग और मोम की तड़क-भड़क। इस तड़क-भड़क और चाइनीज लाईटिंग ने दीपावली के लिए दीए बनाने वाले समाज के अस्तित्व पर संकट खडा कर दिया है।


अगर बात करतें पौराणिक महत्व कि तो जिस दिन भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे उस रात कार्तिक मास की अमावस्या थी यानि आकाश में चांद दिखाई नहीं दे रहा था।  ऐसे में अयोध्यावासियों ने अपने भगवान राम के लिए स्वागत में पूरी अयोध्या नगरी को प्रकाश से जगमग कर दिया।
इसी दिन से मिट्टी के दियों के साथ पूरी आस्था के साथ दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा। धीरे-धीरे वक्त के बीतने के साथ ही दीपावली के त्योहार पर खुशिया मनाने का तरीका भी बदलता गया।
सालों साल चले आ रहे इस त्यौहार को आज भी लोग धूमधाम से मनाते आ रहे है लेकिन इन सबके बीच पाश्चात्य संस्कृति ने पैर पसारे और लोग धीरे-धीरे चाईनिज, जैल सहित अन्य सामग्रियों के तैयार दीये काम में लेने लगे। आज लोग इसी डगर पर है, हर कोई इस चकाचैंध में खोना चाहता है। शहर में इन लाईटिंग और मोम वालें दीयों की भरमार है। इसके साथ ही साथ सूर्या वत्स ने आगे कहा कि इससे देश का पैसा दुसरे देशों का जाता है। आज हम भले ही इन दीयों को ज्यादा अपनाने लगे हो, लेकिन इस सीधा असर पड़ा है कि उन घरों पर जो बरसों बरस हर किसी के घर को इस दिन गमगम करते थे, इन परिवारों की हालत आज बहुत पतली हो गई है।
          दीये बनाने वाले इन परिवारों का कहना है कि मिट्टी के दीयों के प्रति बेरूखी से उन पर तलवार लटक गई है। आज वो बेरोजगारी तक का सामना कर रहे है।  इन दीयों की कम खरीद पर इन परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट तक मंडराने लगा है।  इन परिवारों की मानें तो अब तो उनके बच्चें भी इस काम से छुटकारा पाने चाहते है। जबकी मिट्टी के दीप जलाने से देश का पैंसा गरीब देशवासीयों के पास रहेगा। इस मौके पर सुरेन्द्र पंडित, महेश पंडित, केलाश पंडित, होरील, दिनेश, शंकर पंडित, बेजु पंडित, राजा पंडित, राजेन्द्र पंडित, पुटुश, विजय राम आदि शामिल थे।



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