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अंधा कानून! निर्दोष बच्चों को अपराधी बनाने पर तुली है बिहार पुलिस

 पटना (अनूप नारायण) : इन किशोरों को पुलिस अपराध की दुनिया में ढकेलना चाहती है। पुलिस ने रात में छापेमारी कर इन्हें भारत बंद करने के आरोप में गिरफ्तार किया है। इनमें से कई स्कूल-कोचिंग से लौटते वक्त ही पुलिस के हत्थे चढ़ गये। सरकार को अपने इन पुलिसकर्मियों को मेडल से नवाजना चाहिए।

बंद के दौरान सड़क जाम और तोड़फोड़ के आरोप में गया की पुलिस ने बेलागंज से नौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इनमें से पांच कथित तौर पर नाबालिग हैं। इन्हें वयस्कों के साथ पूरी रात हाजत में रखा गया। हथकड़ी लगाकर इनकी कोर्ट में पेशी की गई। एसएसपी साहब इसे झूठलाते रहे। दलील देते रहे कि ऐसा नहीं किया गया। साहब कैमरा झूठ नहीं बोलता। इनकी जबर्दस्त पिटाई की गई। ऐसे मानों ये खूंखार आतंकी या अपराधी हों। एक ओर तो सरकार नक्सलियों को मुख्य धारा में शामिल करने के लिए एक-से-बढ़ कर एक योजनाएं चला रही हैं। दूसरी ओर किशोरवय लोगों को अपराध की दुनिया में जबरन ढकेल रही है। इसमें सरकार और प्रशासन के ही जिम्मेवार अधिकारी हैं।

निजी तौर पर बंद का विरोध करता हूं। बंद चाहे किसी भी दल या संगठन की ओर से बुलायी जाये। हो-हंगामा का भी समर्थन नहीं करता। मारपीट की इजाजत तो सभ्य समाज में किसी को भी नहीं है। आजादी के बाद लोक कल्याणकारी पुलिस की परिकल्पना की गई। सरकार चाहती है कि पुलिस लोगों से जुड़े। इसके लिए उसे नैतिकता का पाठ भी पढ़ाती है। गाहे-ब-गाहे इसकी पड़ताल भी होती है। लेकिन आये दिन पुलिस का वीभत्स रूप ही सामने देखने को मिलता है। कभी भी पुलिस लोगों के साथ जुड़ नहीं पायेगी। अपराधी, उग्रवादी, माओवादी और आतंकवादी तो इनसे डरते नहीं। नेताओं की चाकरी से इन्हें फुर्सत नहीं मिलती।
जो दो जून की रोटी में किसी तरह लगे हैं, उनके लिए पुलिस आतंक का पर्याय बनी है।

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