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बांका : समुद्र मंथन में विषपान के बाद यहां पड़ा था भोलेनाथ का पहला कदम


[धोरैया | अरूण कुमार गुप्ता] :-

बांका जिला के धोरैया प्रखंड के पैर पंचायत अंर्तगत पैर पहाड़ी पर स्थित शिव मंदिर मुगलकालीन कलाओं से बना श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। यहाँ प्रत्येक सोमवार को दूरदराज के अलावे प्रखंड क्षेत्र के शीव भक्त पहुँचते है। लताओं व वृक्षों के बीच पहाड़ी के शीर्ष पर हियेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध शिवपुरी शिवमंदिर अवस्थित है. इस मंदिर की महिमा अपरंपार है.
मंदिर के पुजारी प्रेम कुंदन बिहारी ने बताया कि सावन माह के अलावे शिवरात्री के मौके पर यहां काफी दूर दराज से लोग आकर अपनी मन्नयते मांगने के साथ शिवलिंक पर जलभिषेक व पूजा अर्चना करते है। शिवरात के मौके पे यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है।उन्हौन बताया कि  मंदिर पुजारी के रूप में ये हमारी सातवीं पीढी है। इससे पहले मंदिर के पुजारी  लाली बाबा उर्फ चेतनानन्द शास्त्री हुआ करते थे। उनके अथक प्रयास से पहाड़ के चारों ओर फैली हरियाली जिसमें सैकडों बेल, कुर्म, कंद, माधवीलता, पलास सहित कई रसदार फल व वृक्ष हैं।
सन् 1980 ई. से ही लाली बाबा इस अभियान में जुटे हुए है, और यहां के ग्रामीण भी इनको पूरा सहयोग देते है। जो इस मंदिर की सुदंरता में चार चाँद लगा देती है।

पूर्व पुजारी लाली बाबा ने बताया कि इस शिव मंदिर का इतिहास 350 वर्ष से अधिक पुराना है। मंदिर के चौखट आदि पर पत्थर के निर्माण के प्रमाण अभी भी मौजूद है। पैर पहाड़ी के नाम पर किंवदंती का प्रसंग सुनाते हुये बताते है कि समुद्र मंथन काल में जब भगवान शंकर विषपान कर चले तो पहला कदम इसी पहाड़ी पर पड़ा।
साढ़े नौ एकड़ जमीन पे फैली यह पहाड़ी की हरिायली आने वाले भक्तों को थकान दूर कर देती है।
बाबा ने बताया कि 1904-5 के नक्से में भी इस पहाड़ी का जिक्र है वहीं इससे सटे डाड़ का भी नाम हिजरी कित्ता डाड़ है। वहीं इस मंदिर को खैरा डयड़ी, रजौन के तत्कालीन जमींनदार लालजी मंडल ने 7.5 बीघा भूमी दान दे दिया था।


» आज से 300 वर्ष पूर्व भी बताया गया था मंदिर को पुराना

आज से तीन सौ वर्ष पूर्व स्व0 महेश्वर प्रसाद सिंह का दमाद पुरातत्त्व विभाग में नौकरी करने के दरमियान जब यहां आये थे तो उन्होंने ही जांच कर कहा था कि यह मंदिर पुराना है वैसे अपने साथ जांच करने का समान ला लाने के चलते पूर्ण रूपेण कितने वर्ष पुराना है, इसकी सही जानकारी तो नहीं दी गई लेकिन अनुभव के आधार पर उसने इस मंदिर मुगलकालीन जरूर बताया।
तत्कालीन मुखिया सुमरीत मंडल ने दी थी लाली बाबा को पहाड़ की देखरेख की जिम्मेवारी दी थी।
इस पहाड़ कि उंचाई लगभग 200 से 250 फीट पे शिव मंदिर होने के कारण इसे यहां के लोग मिनी कैलाश पर्वत कहते है।

» कौन है लाली बाबा
लाली बाबा पैर पंचायत के ही पसनाहा गांव के रहने वाले हैं।परन्तु 38 साल से पैर में डेरा जमाये हुए हैं। वहीं पौधों के देखरेख व नये पौधों को लगाना उनका मिशन है।

» किसने की थी पार्वती सहित अन्य प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा
1934 ई0 में लाली बाबा के दादा-दादी ने पार्वती, हनुमान,एवं भैरव बाबा के मदिर में प्राण प्रतिष्ठा की थी। हनुमान मंदिर को तोड़कर 1992 ई0 में डिप्टी चीप माइनिंग इंजिनियर स्व0 काली किंगकर सिंह ने पुनः बनवाया था। वहीं भैरव मंदिर को धोरैया बीडीओ प्रभात झा ने तोड़वाकर पुनः बनवाया था।


» पहाड़ के उपर पानी की नही है व्यवस्था
कुछ वर्ष पूर्व पहाड़ को खोदकर पानी निकालने के लिए प्रयास किया गया था लेकिन संसाधन के अभाव में पानी नही निकल पाया जिससे उपर गए भक्तों को पानी के लिये नीचे आना पड़ता है या साथ में बोतल बंद पानी लेकर ऊपर जाना पड़ता है।

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पाठकों को जानकारी से अवगत करते चलें कि, झारखंड की सीमा से सटे रहने के कारण भोलेनाथ के दरबार में दो राज्यों की दीवारें भी मिट जाती है। वहीं इसके मनोरम दृश्य को देख मन मुग्ध हो जाता है। पूजा के लिये आये श्रद्धालु पूजा के बाद इस मनोरम वादी में घूमकर अपनी थकान दूर कर लेते है। जिससे प्रखंड क्षेत्र के लोगों के लिए एक रमणीक स्थान बन गया है।