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महज हिरोईन नहीं, क्राइसिस के दौर की उम्मीद थी मनीषा

Gidhaur.com (विशेष) : कई साथियों ने पूछा है कि मनीषा राय के बारे में बताइये कि क्या हुआ, कैसे हुआ और मनीषा के बारे में और बताइये. मनीषा 18 मई की रात गुजर गयी. सामुदायिक सहयोग से बन रही फिल्म 'कोहबर' की वह मुख्य अभिनेत्री थी. 19 मई से शूटिंग के दूसरे शिड्यूल की शुरुआत होनी थी. निर्देशक उज्जवल पांडे, अभिनेता राजू उपाध्याय समेत पूरी टीम सिताबदीयर पहुंची चुकी थी. मनीषा भी वहीं जा रही थी. बाईक से जा रही थी. रास्ते में छितौनी गांव के पास सड़क दुर्घटना हुई. वह दुनिया से विदा हो गयी. साथ में संजीव मिश्र भाई थे, वे भी बाद में दम तोड़ दिये. मनीषा के बारे में और विस्तारित जानकारी युवा सिनेकार और कोहबर के निर्देशक उज्जवल पांडेय दे सकते हैं लेकिन वे अभी इस स्थिति में नहीं कि कुछ बता सके. सुबह 15 सेकेंड के लिए ही फोन किया था उन्हें, बात करने की स्थिति नहीं थी. उज्ज्वल किस पीड़ा से गुजर रहे होंगे, यह सब हम दूर बैठकर सोच सकते हैं अभी. उज्जवल उनके साथ लंबे समय से काम कर रहे थे, विकट से विकट स्थितियों में मनीषा उनके साथ काम कर रही थी. ब्यूटीफुल जैसे फिल्म में पहले मनीषा काम कर चुकी थी, कोहबर शॉट फिल्म में काम कर चुकी थी और अब कोहबर फीचर फिल्म में काम कर रही थी. बलिया के मनियर गांव में शूटिंग चली थी पिछले दिनों. मनीषा वहां बहुरिया कहाने लगी थी. ऐसा ही हुआ था साधना सिंह के साथ जब वे नदिया के पार की शूटिंग करने विजयीपुर गांव पहुंची थी. विजयीपुर की बहुरिया बन गयी थी वह. शादी—व्याह का ​दृश्य फिल्म के निर्देशक गोविंद मूनिस ने पहले ही फिल्मा लिया था और उसके बाद तो साधना सिंह बिन पायल, बिछिया और सिंदूर के रहे तो गांव की महिलाएं कहे कि तेरी तो शादी हो गयी है तो तू ऐसे ही कैसे रहती है. यह साधना सिंह खुद एक दफा लंबी बातचीत में बतायी थी. मनीषा को लेकर मनियर में ऐसे ही भावनात्मक इनोसेंस लगाव—जुड़ाव हुआ था वहां के लोगों का. अब आज से दूसरा शिड्यूल शुरू होनेवाला था सिताबदीयर में. मनीषा को गुगल में सर्च करेंगे तो उसका नाम नहीं मिलेगा. अपने देश में डोक्यूमेंट्री फिल्म या शॉट फिल्म में काम करनेवाले नायक—नायिकाओं को मेनस्ट्रीम मीडिया में जगह नहींं मिलती. अधिक से अधिक डायरेक्टर तक को जगह मिल जाता है. वह भी तब जब कोई अवार्ड मिला या विवाद हुआ. बाकि डोक्यमेंट्री और शॉट फिल्मों को अपने यहां तरजीह देने का चलन अभी नहीं. मनीषा भोजपुरी फिल्म में काम कर रही थी, फिर भी उनका नाम आपको पॉपुलर फ्रंट पर नहीं मिलेगा, क्योंकि भोजपुरी फिल्मों के नाम पर करनेवाली जो पत्र—पत्रिकाएं है या मेनस्ट्रीम मीडिया में भी जिन भोजपुरी के अभिनेता—अभिनेत्रियों को जगह मिलती है, उसकी परिधि देह तक होती है. हॉट शीन,देह दर्शन, कामुकता... इसी में समेट कर है भोजपुरी फिल्मी पत्रकारिता. मनीषा का नाम इसलिए भी नहीं मिलेगा. पाखी हेगड़े, रानी चटर्जी, आम्रपाली दुबे, अक्षरा सिंह आदि को ही मीडिया भोजपुरी अभिनेत्री मानती है. भोजपुरी के भी कई कर्णधार और उस नाम पर अपना सारा कारोबार चलानेवालों को सीमा भी इतनी ही है. इसलिए मनीषा इन पॉपुलर फार्मेटों में नहीं मिलेगी. लेकिन इन सभी जगहों पर नहीं मिलने से भी मनीषा हमारे लिए मीडिया की मोहताज नहीं थी. वह भोजपुरी की तमाम अभिनेत्रियों से बहुत आगे की चीज थी. आनेवाले समय में मनीषा एक पाथब्रेकर, पाथ फाइंडर की तरह याद की जाएगी. वजह भी ठोस होगी. आप कह सकते हैं कि अभी तो भोजपुरी के नाम पर कोहबर नामक एक शॉट फिल्म में काम की और फिर अब फीचर फिल्म में काम कर रही थी तो इससे पाथब्रेकर, पाथफाइंडर या ट्रेंडसेटर भी क्यों कह रहे. हमारे जैसे लोग हमेशा कहेंगे. अपनी सीमित बुद्धि के आधार पर यही बड़ा काम लग रहा है. मनीषा पढ़ी लिखी लड़की थी. ठीक—ठाक परिवार से आती थी. संभ्रांत और नामी परिवार से आती थी. बिहार और उत्तरप्रदेश के बॉर्डर पर एक गांव है टूटवारी, वहीं की थी. टूटवारी गांव बक्सर—गाजीपुर बॉर्डर पर है. मनीषा जब फिल्मों में काम करने का फैसला की तो उनके घर में विरोध शुरू हुआ. फिर गांव में. और भी तरह—तरह से. यह विरोध स्वाभाविक भी  था. एक तो भोजपुर का इलाका ही कई मायनो में अभी सामंती और पुरूषवादी जकड़न से नहीं निकल सका है. उसमें भी मनीषा सवर्ण जाति और भूमिहारों के गढ़ इलाके के गांव की थी. यह विरोध स्वाभाविक था. यूं भी किसी एक जाति की बात नहीं, पूरा भोजपुरी समाज ही अधिकांशत: गायकों और नायकों को पैदा करनेवाला समाज रहा है. वह गायक और नायक अपने समाज से देता है, उसे बढ़ाता है, उसकी जय—जयकाार करता है लेकिन गायिका और नायिका देने में परहेज करता रहा है. गायिकाओं का ट्रेंड तो अब शुरू भी हुआ है लेकिन नायिकाओं को देने से अब भी परहेज ही रहा है. जब भोजपुरी की पहली फिल्म बन रही थी तब भी भोजपुरी की अपनी नायिका नहीं थी, अब भी नहीं है. पाखी हेगड़े, रानी चटर्जी, नगमा ही स्टार बनी रहीं. बाद में आम्रपाली दुबे जैसी अभिनेत्रियां आयीं भी भोजपुरी इलाके से तो वे किस राह पर चल रही हैं, देख सकते हैं. वे पाखी और रानी से ही होड़ ले रही हैं. भोजपुरी गीत—संगीत और सिनेमा के नुकसान का एक बड़ा कारण अपने समाज से गायिकाओं और नायिकाओं को नहीं देना रहा. जब दूसरे समाज की लड़कियां रहेंगी तो मजावादी अंदाज जा नहीं सकता. इसे आप भोजपुरी गायकी में देख सकते हैं. अगर विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिनहा, विजया भारती जैसी गैर भोजपुरी गायिकाएं भोजपुरी को नहीं मिली होती तो हालिया वर्षों में गैर भोजपुरी होकर भोजपुरी गानेवाली गायिकाओं ने क्या किया है भोजपुरी के साथ देख सकते हैं. वे क्या गाती हैं और कैसे इस भाषा को और विकृत कर रही हैं, इसे देख सकते हैं. ऐसे में मनीषा राय एक उम्मीद बनकर उभर रही थी. वर्षों से उसर ओर बंजर पड़े भोजपुरी सिनेमा की जमीन पर एक खांटी भोजपुरिया इलाके से नायिका बनने को तैयार हुई थी. मनीषा चाहती तो ब्यूटीफुल के बाद या कोहबर शॉट फिल्म के बाद एकाध बार बॉम्बे ट्राई मारती. अभिनय की बारिकी आप कोहबर में देख सकते हैं. कूदरत ने सौंदर्य और स्मार्ट पर्सनालिटी दी थी. वे ट्राई मार सकती थी. मुंबई के बॉलीवुड में नहीं भी तो भोजपुरी सिनेमा में तो आसानी से ले ली जाती ओर जाती तो आज की अभिनेत्रियों को पीछे छोड़ती. अपने अभिनय से ही लेकिन मनीषा ने उधर   पलटकर भी नहीं देखा. उन्होंने तय किया कि वे भोजपुरी भी करेंगी तो अपनी शर्तों पर करेंगी. एक नयी लकीर बनायेंगी. चाहे जितना संघर्ष हो, सफलता मिले या न ​मिले, चाहे जितना वक्त लगे लेकिन एक नयी धारा में शामिल होंगी. कोहबर में जितने समर्पण से, मनोयोग से वे काम कर रही थी, जिस तरह से वे फिल्म से एकाकार हो चुकी थी, वह मनीषा के अंदर की तड़प को ही दिखाता है. इसलिए मनीषा को हम लोग उम्मीदों की एक किरण के रूप में देख रहे थे. इसलिए ही मनीषा के जाने से आज पूरा का पूरा भोजपुरी समाज का वह तबका शॉक्ड है, हर किसी को लग रहा है कि उसके घर की लड़की चली गयी, उसकी अपनी मनीषा चली गयी, क्योंकि मनीषा ने नयी उम्मीद जगायी थी, नयी राह बनाने की शुरूआत की थी. अश्लीलता, विकृति से उकताया हुआ, भोजपुरी सिनेमा से दूरी बना चुका भोजपुरी समाज का एक बड़ा हिस्सा मनीषा जैसी लड़की का इंतजार ही कर रहा था जो परदे पर आये. प्रेम को प्रेम के सौंदर्य की तरह दिखाये जाने पर ही काम करे. तन को मन पर हावी ना होने दे, अपने दैहिक भाषा से सबको कायल कर दे, भोजपुरी अभिनेत्रियों की तरह देह से नहीं. मनीषा वह सारी कसौटियों पर खरी उतर रही एक अभिनेत्री थी. मनीषा के जाने का मलाल भोजपुरी समाज को हमेशा रहेगा. बितते समय के साथ और ज्यादा. अभी तो यह दुख और गहरा रहेगा, क्योंकि अभी वह समय है जब एक के बाद एक धड़ाधड़ अश्लील—विकृत भोजपुरी फिल्में पीट रही हैं, ऐसी फिल्मों में काम करनेवाले नायक—नायिकाओं का मान—भाव कमता जा रहा है, सिनेमा में नायक—नायिका बननेवाले समाज में भाषा और संस्कृतिक के खलनायक—खलनायिका के रूप में स्थापित हो रहे हैं. एक शून्य पैदा हो रहा है भोजपुरी सिनेमा में और उसी शून्य को भरने की शुरूआत की थी।

अनूप नारायण
23/05/2018, मंगलवार

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