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एक रात ऐसी जो श्मशान के लिए बेहद खास है

Gidhaur.com (विशेष) : काशी के उस श्मशान पर जिसके बारे में ये मशहूर है कि यहां चिता पर लेटने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है। दुनिया का वो इकलौता श्मशान जहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं होती। जहां लाशों का आना और चिता का जलना कभी नहीं थमता। पर जब दहकती चिताओं के ठीक करीब डांस होने लगे. मातम के बीच तेज़ संगीत पर लड़कियां थिरकने लगें और जब मौत की ख़ामोशी डांस की मस्ती में बदल जाए तो फिर चौंकना लाजिमी है।

श्मशान यानी जिंदगी की आखिरी मंजिल और चिता…यानी जिंदगी का आखिरी सच। पर जरा सोचें….अगर इसी श्मशान में उसी चिता के करीब कोई महफिल सजा बैठे और शुरू हो जाए श्मशान में डांस तो उसे आप क्या कहेंगे? खामोश, ग़मगीन, उदास और बीचबीच में चिताओं की लकड़ियों के चटखने की आवाज अमूमन किसी भी श्मशान का मंज़र या माहौल कुछ ऐसा ही होता है।
पर एक रात ऐसी जो श्मशान के लिए बेहद खास है. एक ऐसी रात जो श्मशान के लिए रौनक की रात है. क्योंकि ये रात इस श्मशान पर साल में सिर्फ एक बार उतरती है और बस इसीलिए साल के बाकी 364 रातों से ये रात बिलकुल अनोखी बन जाती है। ये एक रात इस श्मशान के लिए जश्न की रात है।  इस एक रात में इस श्मशान पर एक साथ चिताएं भी जलती हैं और घुंघरुओं और तेज संगीत के बीच कदम भी थिरकते हैं।
काशी के जिस मणिकर्णिका घाट पर मौत के बाद मोक्ष की तलाश में मुर्दों को लाया जाता है वहीं पर ये तमाम नगरवधुएं जीते जी मोक्ष हासिल करने आती हैं। वो मोक्ष जो इन्हें अगले जन्म में नगरवधू ना बनने का यकीन दिलाता है। इन्हें यकीन है कि अगर इस एक रात ये जी भरके यूं ही नाचेंगी तो फिर अगले जन्म में इन्हें नगरवधू का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा।
इनके लिए जीते जी मोक्ष पाने की मोहलत बस यही एक रात देता है। साल में एक बार ये मौका आता है चैत्र नवरात्र के आठवें दिन। और इस दिन श्मशान के बगल में मौजूद शिव मंदिर में शहर की तमाम नगरवधुएं इकट्ठा होती हैं और फिर भगवान के सामने जी भरके नाचती हैं। यहां आने वाली तमाम नगरवधुएं अपने आपको बेहद खुशनसीब मानती हैं।
इसी उधेड़बुन में वक्त तेज़ी से गुज़र रहा था। लेकिन किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब किसी को कोई उपाय नहीं सूझा तो फैसला ये लिया गया कि शहर की बदनाम गलियों में रहने वाली नगरवधुओं को इस मंदिर में डांस करने के लिए बुलाया जाए।
उपाय काम कर गया और नगरवधुओं ने यहां आकर इस महाश्मशान के बीच डांस करने का न्योता स्वीकार कर लिया। ये परंपरा बस तभी से चली आ रही है।
गुज़रते वक्त के साथ जब नगरवधुओं ने अपना चोला बदला तो एक बार फिर से इस परंपरा के रास्ते में रोड़े आ गए। और आज की तारीख में इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए बाकायदा मुंबई की बारगर्ल तक को बुलाया जाता है। यही नहीं परंपरा किसी भी क़ीमत पर छूटने ना पाए, इसका भी ख़ास ख्याल रखा जाता है और इसके लिए साल के इस बेहद खास दिन तमाम इंतज़ाम किए जाते हैं।
इस आयोजन को ज़्यादा से ज्यादा सफ़ल बनाने के लिए पुलिस-प्रशासन के नुमाइंदे बाकायदा इस महफिल का हिस्सा बनते हैं। इस परंपरा की जड़ें कितनी गहरी हैं इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बनारस आने वाले कई विदेशी सैलानी भी इस ख़ास मौके को देखने से खुद को नहीं रोक पाते।
ये बेहद अनोखी और चौंकाने वाली परंपरा जितनी सच है उतना ही सच है इन नगरवधुओं का वजूद जो हर जमाने में मोक्ष की तलाश में यहां आता रहा है।

अनूप नारायण
26/03/2018, सोमवार

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