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बच्चों का भविष्य सँवार रही हैं हाजीपुर की बेटी सरिता


Gidhaur.com (विशेष) : बिहार के हाजीपुर की कर्मठ समाजसेवी सरिता राय विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी कूड़ा-कचड़ा बीनने, मैले-कुचैले रहने व निरक्षरता के बीच बाल मजदूरी करने को मजबूर अपनी जिंदगी बसर कर रहे झुग्गी-झोपडी में रहने वाले बच्चों के भविष्य को सँवारने का कार्य कर रही हैं।

सरिता अपने आर्थिक कमाई से टॉपर स्टडी पॉइंट “उड़ान” क्लास नामक शिक्षण केंद्र चला रही हैं, जहाँ पढने वाले बच्चों की संख्या आज 100 के पार हो चुकी है।

खबर संकलन के दौरान यहाँ शिक्षा का अलख जगाने वाली सरिता राय से इनके ये नौनिहाल छात्र मानो यही कह रहे थे कि ‘तुम बाल दिवस का जश्न मनाते हो, हमे तो पता ही नहीं हमारा भी कोई दिन होता है। सरिता से पढने को आने वाले बच्चों ने आज मुझे ये कहा कि इन्हें बाल मजदूरी भी करना पड़ता है। काश इनको भी पता होता चिल्ड्रेन्स डे का मतलब क्या होता है।

वहीँ सरिता राय ने कहा कि हमारी संस्था की पूरी कोशिश है कि इन बच्चों को ये अहसास हो की बाल दिवस उन्ही के लिए है ताकि बाल मजदुरी से ये बाहर निकले तभी ‘पढोगे तो आगे बढोगे’ का सपना साकार हो सकेगा। जिसके लिए इनकी शिक्षण संस्था पूरी कोशिश कर रही है।

गौरतलब है कि तस्वीर में जितने बच्चे नजर आ रहे हैं वो आज सरिता की टॉपर स्टडी पॉइंट “उड़ान” कलास के हैं जहाँ इन्हें नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। मगर सरिता के टॉपर स्टडी पॉइंट को कोई सरकारी मदद नहीं रहते हुए भी गरीब असहाय बच्चों को सहायता कर रही है।

सरिता के शिक्षण संस्था टॉपर स्टडी पॉइंट उड़ान उन गरीब और असहाय गरीब बच्चों के शिक्षा के लिए काफी समय से पढ़ाने का कार्य करती आ रही है। जो गरीब बच्चे होटल, दुकान में काम करते हैं, जो कभी स्कूल नहीं जाते इनके पढ़ने के लिए कम से कम अच्छे स्कूल में नामांकन होना जरूरी है। ऐसे बच्चे जिन्होंने कभी स्कूल का चेहरा नहीं देखा, उनके लिए सरिता राय और इनकी शिक्षण संस्था एक जरूरत बनकर उभरी है।

सरिता कहती हैं शिक्षादान से बड़ा कोई महादान नहीं। वैसे तो हमारे शास्त्रों में कई तरह के दान का वर्णन है, कोई अन्नदान करता है, तो कोई देहदान कर देता है। कोई वस्त्रों का दान करता है, तो कोई रक्तदान को महादान मानता है। हमारे समाज में हम सभी को कई ऐसे दानवीर मिल जाएंगे जो किसी न किसी वजह से कुछ न कुछ दान करते हैं। लेकिन आज के बाजारीकरण के दौर में एजुकेशन कॉरपोरेट व‌र्ल्ड के हाथों में आ गई है। बड़े उद्योगपति अपने रुपयों को एजुकेशन सेक्टर में लगाकर मोटी कमाई करने में जुटे हुए हैं। आज इन बच्चों को हमारी जरूरत है। इनके जैसे बच्चे यद्दपि भीख मांगने वाले, कूड़ा बीनने वाले और अनाथ बच्चे को मदद करने की इच्छा हुई, इसलिए मैंने निश्चय किया कि इन्हें रास्ते पर लेकर आऊंगी। यह तभी संभव हो सकता जब समाज हमारा साथ दे। आप लोग हमारा साथ देंl

सरिता राय खुद बतौर शिक्षिका की नौकरी एक प्राइवेट कोचिंग सेंटर में करती हैं और इससे जो आमदनी आती है उनसे ये यहाँ हाजीपुर टॉपर स्टडी पॉइंट उड़ान सामाजिक संस्था के तहत झुग्गी झोपडी में रहने वाले बाल मजदूर, कचड़ा चुनने वाले, पेड़ो की पत्तियां जमा करने वाले, मजदूर पिता के साथ बाल मजदूरी करने को मजबूर गरीब एवं जरूरतमंद बच्चों की शैक्षिक जिंदगी संवारने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। संस्था की सचिव सरिता राय ने कहा कि शिक्षा के अधिकार के प्रति जागरुकता जरूरी है।

गरीब व मेधावी बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए सरकार ने कई योजनाएं चला रखी है लेकिन जानकारी के अभाव में लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सरकार ने निजी स्कूलों में नामांकन का 25 प्रतिशत सीट गरीब व पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए सुरक्षित रखने का निर्देश दे रखा है। निजी स्कूलों में इस वर्ग के बच्चों को नि:शुल्क नामांकन लेना है, लेकिन लोगों को इसका व्यापक लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसके लिए लोगों को शिक्षा के अधिकार के प्रति जागरूक होना होगा।

उन्होंने कहा कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले परिवार के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा के अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रावधान है लेकिन निजी स्कूलों की मनमानी व जागरूकता के अभाव में यह योजना धरातल पर साकार होती नहीं दिख रही है। उन्होंने समान शिक्षा व समान परवरिश के अधिकार पर काम करने व निजी स्कूलों की मनमानी के विरोध में अभियान चलाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि अमीरों के बच्चे तो निजी स्कूलों में शिक्षा हासिल कर लेते हैं लेकिन गरीबों के बच्चों को यह सुविधा नहीं मिल पा रही है। गरीब वर्ग के बच्चे जानकारी के अभाव में स्कूल तक नहीं पहुंच पाते। व्यापक रूप से जागरूकता फैला कर ही इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। 

अनूप नारायण
29/01/2018, सोमवार

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