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धन-वैभव की देवी माँ महालक्ष्मी की पूजा परंपरागत रीति के साथ संपन्न

Gidhaur.com (न्यूज़ डेस्क) : बदलते समय के साथ हमारी सभ्यता-संस्कृति भी बदल रही है, पर बात जब गिद्धौर के ऐतिहासिक धरती पर चंदेल वंश से चले आ रहे धर्म, आस्था और विश्वास की हो तो उक्त पंक्तियाँ बेबुनियाद नजर आती है। क्योंकि वर्षों से चली आ रही इस परंपरागत चक्र का गिद्धौर वासी काफी निष्ठापूर्वक अनुसरण करते हैं। यहाँ की परंपरा और संस्कृति को गिद्धौर वासियों ने आज भी कायम रखा है। इस तथ्य की पुष्टि तब हुई जब 5 अक्टूबर, गुरूवार को आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की संध्या गिद्धौर के अति प्राचीन उलाई नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर के प्रांगण में यश, धन, वैभव व स्मृद्धि की देवी माँ महालक्ष्मी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर सैंकड़ों श्रद्धालुओं द्वारा मां की आराधना की गई।
मूर्तिकार राजकुमार रावत द्वारा प्रतिमा को अंतिम रूप देने के उपरान्त देवघर के विद्वान पंडितों द्वारा माँ लक्ष्मी की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा कर बड़े ही निष्ठापूर्वक पूजा की शुरूआत की गई। प्रत्येक श्रद्धालु स्वतंत्र रूप से मां की भक्ति और अराधना करते नजर आए।

चप्पे चप्पे पर थी प्रशासनिक व्यवस्था
गुरूवार 5 अक्टूबर को आरंभ हुए एक दिवसीय मां महालक्ष्मी की पूजा में शान्ति व अमन कायम रखने के उद्देश्यों  को लेकर स्थानीय पुलिस प्रशासन चप्पे-चप्पे पर मोर्चा संभाले हुए थे, ताकि कोई भी असामाजिक तत्व अपने कुकृत्य प्रयास में सफल न हो सके।
विसर्जन में उमड़ा जनसैलाब
गिद्धौर के ऐतिहासिक दुर्गा मन्दिर स्थापित मां महालक्ष्मी की प्रतिमा शुक्रवार 6 अक्टूबर को गिद्धौर के त्रिपुर सुंदरी तालाब मे विसर्जित किया गया। विसर्जन के दौरान पूजा समिति के सदस्य व प्रशासन मुस्तैद रहे। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने सुख-समृद्धि की कामना के साथ माँ लक्ष्मी को विदाई दी। 

विदित हो कि, बंगाल की मां लक्खी पूजा के तर्ज पर आधारित चंदेल वन्श के शासकीय सान्निध्य में इस पूजा का रूपांतरण मां महालक्ष्मी की पूजा के रूप में अपने गिद्धौर राज्य निवासियों के आम आवाम, की सुख एवं समृद्धि के लिए किया था। सदियों से चले आ रहे इस धार्मिक परंपरा को गिद्धौर वासी आज भी समर्पित भाव से निर्वहन करते हैं।

गिद्धौर     |      12/10/2017, गुरुवार

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