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देशना गांव में ताले में बंद है ज्ञान की समृद्ध विरासत, कई इतिहास हैं यहाँ छुपे


(गौरवशाली अतीत पर जमती जा रही सरकार व समाज की अनदेखी की गर्द)
Gidhaur.com (विशेष) : बिहार शरीफ से लगभग 14 किलोमीटर दूर अस्थावां प्रखंड के देशना गांव में स्थित अल-इल्लाह उर्दू लाइब्रेरी को देखने कभी देश के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डाॅ. राजेंद्र प्रसाद पहुंचे थे। सन 1892 में स्थापित इस लाइब्रेरी में कभी एक लाख किताबें हुआ करती थीं। आज भी यहां अनेक नायाब किताबें मौजूद हैं।कभी इस लाइब्रेरी में हयात-ए-सुलेमान, यारे अजीज के हाथों से लिखी कुरान शरीफ का तुर्रा, इस्लामिक साहित्य पर लिखी पुस्तकें, पैगम्बर की जीवनी आदि से संबंधित हजारों नायाब किताबें रखी थीं। एक दिन तत्कालीन राज्यपाल डॉ. जाकीर हुसैन की नजर इस धरोहर पर पड़ी। उन्होंने यहां रखी दुर्लभ पुस्तकों को सुरक्षा की दृष्टि से पटना के खुदाबख्श लाइब्रेरी भेजने का निर्णय लिया। 1952 में लगभग 9 बैलगाड़ी से हजारों किताबें खुदाबख्श लाइब्रेरी ले जायी गयी थीं। इसके लिए वहां अलग से देशना सेक्सन बनाया गया। लेकिन आज भी अनेक दुर्लभ पुस्तकें देशना की लाइब्रेरी में मौजूद है, जिसे पढ़ने वाला कोई नहीं। फिलहाल स्थानीय ग्रामीणों व यहां के बाहर जा बसे लोगों के सहयोग से इनका रख-रखाव किया जाता है।
(खुद पढ़ने नहीं, दूसरे को दिखाने के काम आ रही है लाइब्रेरी)
गांव की युवा पीढ़ी को नहीं पता कि उनके आंगन में ही रखा है ज्ञान का भंडार
यहां के इंचार्ज मो. नैय्यर इमाम कहते हैं कि यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि जिस समृद्ध विरासत को देखने पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद सरीखे व्यक्तिव आए,आज उस गांव की युवा पीढ़ी को अपने आंगन में रखे इस ज्ञान के भंडार को सहेजने की फुर्सत नहीं है। सरकार को बिहार की इस थाती के विकास का बीड़ा उठाना चाहिए। धरोहरों के संरक्षण की दिशा में सरकार के प्रयासों को देखते हुए लोगों को इसकी उम्मीद भी है। बस हमें इसके समृद्ध इतिहास को आम पाठकों तक पहुंचाने का काम करना है। यह कोई एक व्यक्ति के हाथ का काम नहीं है। हम सब को मिलकर इसके इतिहास को जानना और समझना भी है।

गांव में हुआ करता था सात दरवाजा
लाइब्रेरी की तरह इस गांव की भी एक अलग कहानी है। इस गांव के बारे बहुत सारी बातें प्रसिद्ध है जिसमें 'एक पत्थर भी जरा संभल के मारो यारो,नहीं तो किसी ग्रेजुएट के सर पर गिरेगा','अगर कुछ नहीं तो कम से कम दरोगा बनेगा' शामिल है। इस गांव में सात दरवाजा हुआ करता था जिससे हाथी गुजरने भर की जगह हुआ करती थी जिसे बंद कर देने के बाद पूरा गांव सुरक्षित रहता था। हालांकि दरवाजा आज भी मौजूद है लेकिन पहले की तरह नहीं है। एशिया के सबसे बड़े इस्लामिक स्कॉलर सैयद सुलेमान नदवी भी देशना गांव के ही रहने वाले थे जिन्होंने पाकिस्तान का कानून बनाने में अहम भूमिका निभायी थी। देशना स्थित उनका घर जर्जर अवस्था में पड़ा है जिसे देखने वाला कोई नहीं है। मो.नैयर इमाम बताते है कि सैयद सुलेमान नदवी की लिखी पुस्तक रहमते आलम उन्होंने छठी क्लास में सीएमओ स्कूल कोलकाता में पढ़ी थी। 1500 लोगों की आबादी वाले इस गांव में ताले में बंद ज्ञान के इस समृद्ध विरासत को बचाने की पहल सरकार व प्रशासन करे नहीं तो जर्जर अवस्था मे पड़े यह पुस्तकालय खंडहर में तब्दील हो जाएगी और उसे देखकर आने वाली पीढ़ी सिर्फ अफसोस करती दिखेगी।


(अनूप नारायण)
Gidhaur.com    |   10/09/2017, रविवार

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