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दिग्विजय सिंह : न झुके, न रुके, चले तो चलते ही चले गए

विशेष : दिग्विजय सिंह, एक ऐसा प्रभावशाली नाम जो कान मे आते ही, गिद्धौर जैसे इलाके को शीर्ष पर लाकर खड़ा कर देता है। दिग्विजय सिंह यानि कि दादा, जैसा नाम वैसी ही उनकी शख्सियत। इलाके के लोग प्रेमवश दादा कहकर बुलाते रहे और अब भी उनकी चर्चाएं इसी नाम से होती है। सन् 1989 में राजनीतिक जीवनारंभ बांका से किये, जिन्होंने कभी भी चरित्र व व्यक्तित्व से समझौता नहीं किया। जो सदैव स्वाभिमान की लड़ाई लड़ते रहे। जिन्होंने जनता की बेबसी, अनीति, लाचारी, बेरोजगारी व अन्याय  के विरुद्ध सदैव संघर्ष किया।

एक आशा और विश्वास का नाम था दिग्विजय सिंह। एक भरोसा का नाम था दिग्विजय सिंह। एक महामानव थे दिग्विजय सिंह। हर दिल अजीज, जाति, धर्म व संस्कार से ऊपर। एक अनूठा व्यक्तित्व जिनका था, वो दादा थे। जो कभी न झुके, न रुके, चले तो चलते ही चले गए। गिद्धौर ही नहीं, बांका ही नहीं, बिहार ही नहीं, इस देश के एक अद्वितीय सपूत थे दिग्विजय सिंह। दादा के नाम से विख्यात स्व. दिग्विजय सिंह ने उत्कृष्ट व्यक्तित्व के गिद्धौर का संतुलित विकास का व परिपक्व राजनीतिक ख्वाब देखा था।
उनके राजनीतिक जीवन मे कई दाव पेंच आए, लेकिन इनका स्वभाव स्थिर रहा। जाति, कौम, बिरादरी, धर्म व संप्रदाय से परे दादा तो एक अनन्य चिराग थे जिसकी ज्योति लाखों दिलों व मानस में समाविष्ट है और हमेशा रहेगी। रहे भी क्यों न क्योंकि उनके घर के द्वार हर तबके लोगों के लिए सदैव खुले रहे।

विलक्षणता के धनी दिग्विजय सिंह ने 2010 में 24 जून को अंतिम साँस ली और हमने एक देशहित विचारक को खो दिया। चंदेल राजवंश से सम्बन्ध रखने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. दिग्विजय सिंह अपने जीवन काल मे लोकहित मे किये कार्य और समाज के प्रति उनका निःस्वार्थ समर्पण के कारण आज भी अपने चाहने वालों के दिल में जिन्दा हैं।

(अभिषेक कुमार झा)
~गिद्धौर          |          24/06/2017, शनिवार 

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