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ईश्वर का दिया नायाब तोहफा हैं माता-पिता

हम इन्सानो ने भगवान को तो नहीं देखा पर ऐसा कहा जाता है कि, हमारे माता-पिता, ईश्वर की दी गई सबसे बेहतरीन और नायाब तोहफा है। माता-पिता द्वारा दिए गए संस्कार ही बच्चों यानि भावी युवाओं को, जो देश का भविष्य रचने वाले हैं, दिशा दे सकते हैं। परन्तु आज के इस तथाकथित, मोडर्न ज़माने में हम लोग अपने संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल भूलते जा रहे हैं! आज के समय में बच्चों को सही राह दिखाने का भार स्कूल और शिक्षकों पर भी है। संयम, शील और सदाचार से युक्त शिक्षा ही कल्याण करने वाली है। कल्याण करने वाले ये तीनों सूत्रों का तार हमारे माता-पिता से जुड़ा होता है। एक संतान के जीवन में एक पिता का योगदान क्या होता है, इसका जवाब वही दे सकता है, जिस संतान का वजूद, उसके पिता के कारण बचा हो!
भले ही आज के नवयुवक माँ-बाप के संघर्ष को भूल जाए, लेकिन किसी भी संतान के लिए पिता द्वारा दिया दायित्व का निर्वाह आजीवन काल करना होता है। अगर आज की पीढ़ी अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने दिल और आशियानों में जगह देते तो शायद वृद्धाश्रम की संख्या मे बढ़ोतरी न होता।
आजकल के युवा पीढ़ी द्वारा अपने स्वार्थ के लिए माँ-बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाना कोई बड़ी बात नहीं है। हमारे देश के महापुरुषों ने पिता को एक वट वृक्ष का संज्ञा दिया है, जिसके शीतल छाए मे संपूर्ण परिवार सूखदपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। पिता के त्याग, बलिदान, और पितृत्व से ही हमारे जीवन के उद्देश्यों का प्रतिपादन एवं उज्ज्वलमय राह का प्रसश्तीकरण हुआ है। इसके लिए मातृत्व का छाँव कुछ कम पड़ जाता है। मनुष्य का संपूर्ण जीवन माँ के नेतृत्व मे बीतने के उपरांत भी वह मनुष्य अपने पिता के नाम से जाना जाता है। अपने पुत्र और संतान के जीवन पिता का योगदान अकथित है, संतान के प्रति, पिता का समर्पित जीवन और अपने आत्मज के कामयाबी पर उनके आँखों से छलकते आँसू का राज, भला ये नई पीढ़ियाँ क्या समझेगी? एक ओर पिता, अपने संतान के उत्तम स्वास्थ के लिए, अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बिना, दिन रात एक कर देते हैं। जरा सोचिए, क्या बीतती होगी उन बूढ़े दंपतियों पर जब आजकल के नये पीढ़ी पिता के नेतृत्व को असार्थक बताकर उनसे कहते हैं- "बापू सेहत के लिए, तू तो हानिकारक है....!"


(अभिषेक कुमार झा)
~गिद्धौर      |     23/05/2017, मंगलवार

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