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रुका विकास का पहिया, जर्जर है गंगरा की सड़क

"ये गलियां ये चौबारा, यहां आना न दोबारा" इस गाने का असर गंगरा पंचायत के लोगों पर होने लगा है। कहने के तात्पर्य का अंदाजा आप गंगरा पंचायत के इस जर्जर सड़क की तस्वीर से लगा सकते हैं। यहां के निवासी अपने आप को परदेशी समझने लगे हैं क्योंकि इनके कोई भी प्रतिनिधि न तो इनका और न ही इनके गाँव का सुध लेने पहुँचते हैं ।

गंगरा पंचायत में लंबे समय से विकास कार्य ठप पड़ा है। सड़क की मरम्मतिकरण एवं नए सड़क निर्माण की मांग करते कई ग्रामीण मिल जाएंगे। लगभग तीन हजार की आबादी वाले इस गाँव का आलम यह है कि मुख्य सड़क की ओर जाने वाला रास्ता जर्जर जर्जर है जिसमें बारिश के दिनों में गड्ढो में लबालब पानी वहार जाता है। जो कि आपातकालीन परिस्थितियों में खतरनाक साबित होता है। बीमारों खासकर वृद्धों एवं गर्भवती माताओं तथा गर्भस्थ शिशु को भी कई बार जर्जर सड़क पर सफ़र करने की वजह से जान का खतरा हमेशा बना रहता है। यही नहीं क्षेत्र के ग्रामीणों को गांव से बाहर आने पर शाम होनें के बाद दुर्घटना के भय से अपना जरूरी काम छोड़कर भी शाम ढलने से पहले गांव लौटने को मजबूर होना पड़ता है। लोगों को रोजमर्रा का सामान खरीदना पहाड़ तोड़ने के समान लगता है। गंगरा से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित गिद्धौर बाजार की दूरी भी इस जर्जर सड़क ने बढा दी है।
  



उल्लेखनीय है कि गिद्धौर के गंगरा क्षेत्र में लंबे अर्से से क्षेत्रवासी कच्चे और जर्जर सड़क पर ही आवाजाही करते रहें है तथा इस मार्ग के जीर्णाेद्वार की कई बार मांग उठाने के बावजूद उनकी समस्या का अब तक निदान नहीं हो सका है। इसका खामियाजा गांव के छात्र-छात्राओं को भी भुगतना पड़ रहा है। जर्जर सड़क के कारण यहाँ के बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। इस क्षेत्र के लोगों को इन समस्याओं को पूछने वाला कोई नहीं है। जबकि प्रसिद्ध कोकीलचंद बाबा के पिंडी दर्शन के लिए भी कई लोग यहाँ आते हैं।

विदित हो कि यहां के लोगों का जीवन-यापन व आर्थिक आमदनी खेती-बाड़ी पर निर्भर करता है। सड़क के अभाव में पीठ पर बोरियां लादकर ग्रामीण व गरीब किसान अनाजों को मुख्य रस्ते से बाजार तक पहुंचाते हैं। फलतः ज्यादातर फसलें रास्ते में ही गिर जाती हैं और बाजार तक नही पहुंच पाती हैं। इससे उनकी मेहनत का काफी पैसा ढुलाई में ही खर्च हो जाता है। काश्तकारों को इस से निराशा ही हाथ लगती है। यही वजह है कि बाजार के अभाव में काश्तकार बिचौलियों के हाथ लुटने को विवश हो जाते हैं। सड़क के मामले मे तो गंगरावासियों को मायूसी ही हाथ लगी है। रोजगार के उचित अवसर न मिलने से भी ये लोग अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
जनता के प्रतिनिधि भी वोट के लिए गांवों का दौरा कर लेते हैं। किन्तु कुर्सी मिलते ही वे इन गांवों को भूल जाते हैं। उन्हे तब उनकी याद आती है जब उन्हें फिर वोट की जरूरत महसूस होती है। कहा जा सकता है कि यहां के जनप्रतिनिधि भी इन भोले और सीधे लोगों को आश्वासन का झुनझुना थमा कर अपना उल्लू ही सीधा करते हैं। आज २१वी सदी में जब लोग डिजिटल युग में जी रहे हैं वहीं आज भी गंगरा के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।

अगर भरोसा नहीं तो एक बार हो आइये गंगरा। बाबा कोकिलचंद का दर्शन भी हो जायेगा इसी बहाने।



(अभिषेक कुमार झा)
गिद्धौर | 30/04/2017, रविवार 
www.Gidhaur.blogspot.com

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